।। मूल पद्य ।।
सागर महि बूंद बूंद महि सागरु, कबणु बुझै विधि जाणै।
उतभुज चलत आपि करि चीनै, आपे ततु पछाणै।।1।।रहाउ।।
अैसा गिआन विचारै कोई, तिसते मुकति परमगति होई।।
दिन महि रैणि रैणि महि दीनी, अरु उसन सीति विधि सोई।
ताकी गति मति अवरु न जाणै, गुर बिनु समझ न होई।।2।।
पुरख महि नारि नारि महि पुरखा, बूझहु ब्रह्म गिआनी।
धुनि महि धिआनु धिआन महि जानिआ, गुरमुखि अकथ कहानी।।3।।
मन महि जोति महि मनुआँ, पंच मिले गुर भाई।
नानक तिनके सद बलिहारी, जिन एक सबदि लिवलाई।।4।।
।। मूल पद्य ।।
सागर महि बूंद बूंद महि सागरु, कबणु बुझै विधि जाणै।
उतभुज चलत आपि करि चीनै, आपे ततु पछाणै।।1।।रहाउ।।
अैसा गिआन विचारै कोई, तिसते मुकति परमगति होई।।
दिन महि रैणि रैणि महि दीनी, अरु उसन सीति विधि सोई।
ताकी गति मति अवरु न जाणै, गुर बिनु समझ न होई।।2।।
पुरख महि नारि नारि महि पुरखा, बूझहु ब्रह्म गिआनी।
धुनि महि धिआनु धिआन महि जानिआ, गुरमुखि अकथ कहानी।।3।।
मन महि जोति महि मनुआँ, पंच मिले गुर भाई।
नानक तिनके सद बलिहारी, जिन एक सबदि लिवलाई।।4।।
शब्दार्थ-विधि=युक्ति। उतभुज=अद्भुत। चलत=चरित्र। ततु=सार वस्तु। ‘दिन महि रैणि रैणि महि दीनी अरु उसन सीति विधि सोई’= दृष्टि-योग करे। दिन-उसन-उष्म-सूर्य-गंगा-पिंगला। रैणि-सीत-रात- चन्द्र-यमुना-इड़ा। गति=चाल। पुरख महि नारि नारि महि पुरखा-पुरुष में प्रकृति और प्रकृति में पुरुष। पंच गुर भाई=पंच नाद। सद=सदा। एक=केवल, सिर्फ।
भावार्थ-समुद्र में बूँद है और बूँद में समुद्र है अर्थात् पिण्ड में ब्रह्माण्ड और ब्रह्माण्ड में पिण्ड है। इसको कौन बूझे और इसकी जानने की विधि को कौन जाने? इस आश्चर्यमय चरित्र को जानने की युक्ति को जानकर अपने से उसका अभ्यास करके इसको जो पहचानते हैं, वे आत्म-तत्त्व को पहचानते हैं।।1।। ऐसे ज्ञान को जो विचारते हैं, उनको मुक्ति और परम गति होती है, दृष्टियोग-द्वारा इड़ा-पिंगला का जो मिलाप करता है, उसकी चाल और बुद्धि को दूसरे नहीं जानते हैं। इसकी समझ गुरु के बिना नहीं होती ।।2।। परम पुरुष परमात्मा में प्रकृति का पसार है और प्रकृति में वह व्यापक है। हे ब्रह्मज्ञानी! यह बूझो। ध्वनि में ध्यान हो, तो इस ध्यान में गुरु के मुख से कहा गया यह अकथनीय विषय जाना जाता है।।3।। मन में ज्योति है, ज्योति में मन रहे, तो पाँच गुरु भाई-पाँच सहायक-पंच शब्द मिल जाते हैं। गुरु नानक कहते हैं कि जो केवल शब्द में लौ लगाते हैं, उनकी सैकड़ों बलिहारी है।।4।।
परिचय
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