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(5) . गुरु नानक साहब की वाणी
[11. दुविधा बउरी मनु बउराइआ।
झूठे लालचि जनमु गँवाइआ।]


।। मूल पद्य ।।

दुविधा बउरी मनु बउराइआ। झूठे लालचि जनमु गँवाइआ।।
लपटि रहि फुनि बन्धनु पाइआ। सतिगुरि राखे नाम दिड़ाइआ।।1।।
ना मनु मरै न माइआ मरै।
जिनु कीछु किआ सोई जाणै। सबदु विचारि भउसागरु तरै।।1।।रहाउ।।
माइआ संचि राजै अहंकारी। माइआ साथि न चलै पियारी।।
माइआ ममता है बहुरंगी। बिनु नावै को साथि न संगी।।2।।
जिउ मनु देखहि पर मनु तैसा। जैसी मनसा तैसी दसा।।
जैसा करमु तैसी लिव लावै। सतिगुरु पूछि सहज घरु पावै।।3।।
रागि नादि मनु दूजै भाइ। अन्तरि कपटु महा दुखु पाइ।।
सतिगुरु भेटै सोझी पाइ। सचै नामि रहै लिव लाइ।।4।।
सचै सबदि सचु कमावै। सची वाणी हरिगुण गावै।।
निज घरि वासु अमर पदु पावै। ता दरि साचै सोभा पावै।।5।।
गुर सेवा बिन भगति न होई। अनेक जतनु करै जो कोई।।
हउमै मेरा सबदै खोई। निरमल नाम वसै मनि सोई।।6।।
इसु जग महि सबदु करणी है सारु। बिनु सबदै होर मोह गुवारु।।
सबदै नाम रखै उरि धार। सबदे गति मति मोख दुआर।।7।।
अवर नाहीं करि देखणहारो। साचा आपि अनूपु अपारो।।


।। मूल पद्य ।।

दुविधा बउरी मनु बउराइआ। झूठे लालचि जनमु गँवाइआ।।
लपटि रहि फुनि बन्धनु पाइआ। सतिगुरि राखे नाम दिड़ाइआ।।1।।
ना मनु मरै न माइआ मरै।
जिनु कीछु किआ सोई जाणै। सबदु विचारि भउसागरु तरै।।1।।रहाउ।।
माइआ संचि राजै अहंकारी। माइआ साथि न चलै पियारी।।
माइआ ममता है बहुरंगी। बिनु नावै को साथि न संगी।।2।।
जिउ मनु देखहि पर मनु तैसा। जैसी मनसा तैसी दसा।।
जैसा करमु तैसी लिव लावै। सतिगुरु पूछि सहज घरु पावै।।3।।
रागि नादि मनु दूजै भाइ। अन्तरि कपटु महा दुखु पाइ।।
सतिगुरु भेटै सोझी पाइ। सचै नामि रहै लिव लाइ।।4।।
सचै सबदि सचु कमावै। सची वाणी हरिगुण गावै।।
निज घरि वासु अमर पदु पावै। ता दरि साचै सोभा पावै।।5।।
गुर सेवा बिन भगति न होई। अनेक जतनु करै जो कोई।।
हउमै मेरा सबदै खोई। निरमल नाम वसै मनि सोई।।6।।
इसु जग महि सबदु करणी है सारु। बिनु सबदै होर मोह गुवारु।।
सबदै नाम रखै उरि धार। सबदे गति मति मोख दुआर।।7।।
अवर नाहीं करि देखणहारो। साचा आपि अनूपु अपारो।।

राम नाम ऊतम गति होई। नानक खोजि लहै जनि कोई।।8।। शब्दार्थ-फुनि=पुनि, फिर। बन्धनु=बन्धन। राखे=रक्षा किये। संचि=संग्रह कर। राजै=शोभित होते। नावै=नाम। को=कोई। दसा=हालत। करमु=कर्म। रागि=प्रेम, अनुराग। नादि=शब्द। दूजै=दूसरा भाव। भाइ=हे भाई। सोझी=सूझ। दरि=दरवाजा। ‘हउमै मेरा सबदै खोई। निरमल नाम वसै मनि सोई’=शब्द-अभ्यास करके जो अहंकार को गँवा देता है, उसी के मन में पवित्र नाम बसता है। होर=और। अनूप=उपमा-रहित।

भावार्थ-पगली संशयात्मिका बुद्धि ने मन को पगला बना दिया है। झूठे लालच में जन्म को गँवाया है। मन विषयों में लिपटा रहा और फिर बन्धन पाया अर्थात् फिर बन्धन में पड़ गया। (उसको) सद्गुरु नाम-भजन में दृढ़ करके रक्षा करते हैं ।।1।। न मन मरता है, न माया मरती है, *जिसने इसके लिए कुछ किया है, वही जानता है कि शब्द का विचार करके लोग संसार-सागर को तर जाते हैं ।।1।। अहंकारी पुरुष माया बटोरकर शोभित होते हैं। परन्तु यह प्यारी माया उनके संग नहीं चलती है। माया-ममता तरह-तरह की होती है, बिना (प्रभु) नाम के कोई संगी-साथी नहीं है ।।2।। लोग अपना मन जैसा देखते हैं, दूसरे के मन को भी वैसा ही समझते हैं। जैसी इच्छा होती है, वैसी ही दशा होती है। कर्म के अनुकूल लौ लगती है, सद्गुरु से जिज्ञासा करके सहज घर-आत्म-घर प्राप्त करते हैं ।।3।। हे भाई! गान-विद्या के अनुरागी द्वैत बुद्धि में रहते हैं, अपने भीतर में महादुःखदायी कपट रखते हैं। सद्गुरु से मिलकर सूझ या ज्ञान प्राप्त करते हैं और सत्यनाम में लौ लगाये रहते हैं ।।4।। सत्शब्द की सच्ची कमाई करे अर्थात् आडम्बरहीन होकर नादानुसन्धान या सुरत-शब्द-योग का अभ्यास अत्यन्त प्रेमपूर्वक करे। हरिगुण-गान के सत्शब्दों का गान करे, तो आत्मपद में बासा, अमरत्व की प्राप्ति और परमात्म-पद में असली शोभा प्राप्त करे ।।5।। चाहे कोई अनेक यत्न करे, परन्तु गुरु-सेवा के बिना भक्ति नहीं होगी। नादानु- सन्धान करके जो अहंकार को गँवा देता है, उसी के हृदय में पवित्र नाम बसता है ।।6।। इस संसार में शब्द-अभ्यास करने का कर्म ही सार है। बिना शब्द-साधन के दूसरे सब कर्म मोह और अन्धकार हैं। शब्द ही नाम है, अपने हृदय में उसे धारण कर रखे। शब्द ही गति, बुद्धि और मोक्ष का द्वार है। (अर्थात् शब्द-अभ्यास करने से गति होती है, ज्ञान प्राप्त होता है और मोक्ष प्राप्त होता है) ।।7।। अद्वैत दृष्टि से देखनेवाले अथवा समता की दृष्टि से देखनेवाले अनुपम और अपार स्वयं प्रभु परमात्मा हैं। रामनाम से उत्तम गति होती है। गुरु नानक कहते हैं कि (उस नाम को) बिरले जन खोज कर पाते ।।8।। 

[* मन और माया के वशीभूत नहीं रहना, बल्कि उनको अपने वश में रखना; इसी को माया और मन को मारना कहते हैं। जिसका मन और माया इस भाँति है, उसका मन और माया मृतक है।]

परिचय

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