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(5) . गुरु नानक साहब की वाणी
[7. अलख अपार अगम अगोचरि,
ना तिसु काल न करमा ]


।। मूल पद्य।।

अलख अपार अगम अगोचरि, ना तिसु काल न करमा।
जाति अजाति अजोनी संभउ, ना तिसु भाउ न भरमा।।रहाउ।।
साचे सचिआर विटहु कुरवाणु,
ना तिसु रूप बरणु नहिं रेखिआ, साचे सबदि नीसाणु।।1।।
ना तिसु मातु पिता सुत बंधप, ना तिसु काम न नारी।
अकुल निरंजन अपरपरंपरु, सगली जोति तुमारी।।2।।
घट घट अन्तरि ब्रह्मु लुकाइआ, घटि-घटि जोति सबाई।
बजर कपाट मुकते गुरमती, निरभै ताड़ी लाई।।3।।
जंत उपाई कालु सिरिजंता, बसगति जुगति सबाई।
सतिगुरु सेवि पदारथु पावहि, छूटहि सबदु कमाई।।4।।
सूचै भाडै साचु समावै, बिरले सूचाचारी।
तंतै कउ परम तंतु मिलाइआ, नानक सरणि तुमारी।।5।।


।। मूल पद्य।।

अलख अपार अगम अगोचरि, ना तिसु काल न करमा।
जाति अजाति अजोनी संभउ, ना तिसु भाउ न भरमा।।रहाउ।।
साचे सचिआर विटहु कुरवाणु,
ना तिसु रूप बरणु नहिं रेखिआ, साचे सबदि नीसाणु।।1।।
ना तिसु मातु पिता सुत बंधप, ना तिसु काम न नारी।
अकुल निरंजन अपरपरंपरु, सगली जोति तुमारी।।2।।
घट घट अन्तरि ब्रह्मु लुकाइआ, घटि-घटि जोति सबाई।
बजर कपाट मुकते गुरमती, निरभै ताड़ी लाई।।3।।
जंत उपाई कालु सिरिजंता, बसगति जुगति सबाई।
सतिगुरु सेवि पदारथु पावहि, छूटहि सबदु कमाई।।4।।
सूचै भाडै साचु समावै, बिरले सूचाचारी।
तंतै कउ परम तंतु मिलाइआ, नानक सरणि तुमारी।।5।।

शब्दार्थ-अलख=देखने के बाहर। अपार=असीम। अगम=मन और बुद्धि की गति से परे। अगोचरि=इन्द्रियों से परे। ना तिसु काल=कालातीत। अजोनी=अजन्मा। भाउ=संकल्प, ख्याल। भरमा=भूल। सचिआर=सत्य। विटहु=उसके ऊपर। कुरवाणु=न्योछावर। नीसाणु=चिह्न। अकुल=जिसका कुल नहीं। अपरपरंपरु=सबसे परे। सबाई=समाई। ताड़ी=समाधि। बसगति=वश में आया। सूचै=पवित्र। भाडै=बरतन, अन्तःकरण। सूचाचारी=पवित्र आचरणवाला। तंतै=जीवात्मा, सुरत। परम तंतु=सारशब्द।

पद्यार्थ-परम प्रभु परमात्मा देखने की शक्ति से परे, असीम, मन और बुद्धि की पहुँच के परे, कुल-विहीन, काल और कर्म से रहित तथा भूल और मनोमय संकल्प से हीन है। उसकी स्थिति अवश्य है, उसके ऊपर अपने को न्योछावर करो। उसको रंग, रूप और रेखा नहीं है। सत्यशब्द उसका विभूति-रूप चिह्न है।।1।। उसको माता, पिता, बेटा, भाई, काम और स्त्री नहीं है। वह कुल-रहित, माया-रहित और सबके ऊपर है। सारा प्रकाश उसका ही है।। ब्रह्म-पुरुष सब घटों में गुप्त है। उसकी ज्योति घट-घट में समाई हुई है। गुरु की बुद्धि के अनुकूल चलनेवाला निडर ध्यान लगाकर वज्रकपाट (अन्धकार) को खोलकर उस ज्योति को देखता है।।3।। उस प्रभु ने जीवों को और समय को उत्पन्न किया तथा अपने वश में युक्ति से उन सबको रख लिया। सद्गुरु की सेवा करके उस प्रभु-रूप पदार्थ को गुरुमुख पाता है और शब्द-साधन का अभ्यास करके संसार से छूट जाता है।।4।। पवित्र अन्तःकरणरूप बर्तन में सत्य समाता है और पवित्रता का आचरण करनेवाला बिरला होता है। गुरु नानक कहते हैं कि सुरत को सारशब्द में लीन करके, हे परम प्रभु! वह तुम्हारी शरण में हो जाता है।।5।। 

परिचय

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