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(5) . गुरु नानक साहब की वाणी
[6. अनहदो अनहदु बाजै,
रुण झुणकारे राम]


।। मूल पद्य ।।

अनहदो अनहदु बाजै, रुण झुणकारे राम।
मेरा मनो मेरा मनु राता, लाल पिआरे राम।।
अनदिनु राता मनु वैरागी, सुन्न मंडलि घरु पाइआ।
आदि पुरुष अपरंपरु पिआरा, सतिगुरि अलखु लखाइआ।।
आसणि बैसणि थिरु नाराइणु, तितु मनु राता बीचारे।
नानक नाम रते वैरागी, अनहद रुण झुणकारे।।1।।
तितु अगम तितु अगम पुरे कहु, कितु विधि जाइअै राम।
सचु संजमो सारि गुन गुरु, सबद कमाइअै राम।।
सचु सबदु कमाइअै निजु घरि जाइअै पाइअै गुणी निधाना।
तितु साखा मूलु पतु नहीं डाली, सिरि सभना परधाना।।
जपु तपु करि करि संयम थाकी, हठि निग्रहि नहीं पाइअै।
नानक सहजि मिले जगजीवन, सतिगुर बूझ बुझाइअै।।2।।


।। मूल पद्य ।।

अनहदो अनहदु बाजै, रुण झुणकारे राम।
मेरा मनो मेरा मनु राता, लाल पिआरे राम।।
अनदिनु राता मनु वैरागी, सुन्न मंडलि घरु पाइआ।
आदि पुरुष अपरंपरु पिआरा, सतिगुरि अलखु लखाइआ।।
आसणि बैसणि थिरु नाराइणु, तितु मनु राता बीचारे।
नानक नाम रते वैरागी, अनहद रुण झुणकारे।।1।।
तितु अगम तितु अगम पुरे कहु, कितु विधि जाइअै राम।
सचु संजमो सारि गुन गुरु, सबद कमाइअै राम।।
सचु सबदु कमाइअै निजु घरि जाइअै पाइअै गुणी निधाना।
तितु साखा मूलु पतु नहीं डाली, सिरि सभना परधाना।।
जपु तपु करि करि संयम थाकी, हठि निग्रहि नहीं पाइअै।
नानक सहजि मिले जगजीवन, सतिगुर बूझ बुझाइअै।।2।।

शब्दार्थ-सारि=सार।

भावार्थ-राम के अनहद रुण-झुणकार की ध्वनियाँ बजती हैं। मेरा मन प्यारे राम-रूप लाल रत्न में लवलीन हो गया है। संसार की ओर से विरक्त मन ने दिन-रात राम की ओर लगा हुआ होकर शून्य मण्डल में घर प्राप्त किया है। इस प्यारे राम आदिपुरुष, सबसे परे और अलख (आँख के देखने की शक्ति से बाहर) का सद्गुरु ने दर्शन* कराया। आसन पर थिर से बैठकर वहाँ परमात्म-नारायण के विचार में मन को रत करे-अत्यंत लौलीन करे। गुरु नानक कहते हैं कि हे वैरागी! रुण-झुनकार के अनहद नाद-रूप नाम में रत हो जाओ।।1।। हे लोगो! कहो, उस अगमपुर में किस विधि से जाना चाहिए? (उत्तर) सत्य, संयम के सार गुण को धारण करके गुरु-शब्द की कमाई करनी चाहिए। सत्यशब्द की कमाई करके आत्म-घर में जाकर गुणों के भण्डार-रूप परमात्मा को प्राप्त करना चाहिए। उस परमात्म-रूप वृक्ष को मूल नहीं है, शाखा नहीं है, पत्र नहीं है, छोटी-छोटी डालियाँ भी नहीं हैं। वह सबके शीश में प्रधान पुरुष है। जप, तप और संयम करके लोग थक जाते हैं, हठयोग-द्वारा मनोनिरोध से परम प्रभु परमात्मा नहीं पाए जाते हैं। गुरु नानक साहब कहते हैं कि इस संसार के जीवन-रूप वह प्रभु सहज ही मिलते हैं, यह बूझ सद्गुरु बुझा देते हैं।।2।।  

[* यह दर्शन केवल आत्मा से होता है।]

परिचय

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