।। मूल पद्य ।।
ऐसी बानी बोलिये, मन का आपा खोय।
औरन को सीतल करै, आपहु सीतल होय।।
जग में बैरी कोइ नहीं, जो मन सीतल होय।
या आपा को डारि दे, दया करै सब कोय।।
हस्ती चढ़िये ज्ञान की, सहज दुलीचा डारि।
स्वान रूप संसार है, भूसन दे झख मारि।।
बाजन देह जंतरी, कलि कूँ कहीं मत छोड़।
तुझे पराई क्या परी, अपनी आप निबेड़।।
कबीर काहे को डरै, सिर पर सिरजनहार।
हस्ती चढ़ि दुरिये नहीं, कूकर भुँसै हजार।।
आवत गारी एक है, उलटत होय अनेक।
कहै कबीर नहिं उलटिये, वही एक की एक।।
अर्थ-अपने मन के अहंभाव को छोड़कर इस तरह का वचन बोलिए, जो अन्यों के चित्त को शीतल करे और स्वयं भी शीतल अर्थात् शान्त चित्त (ठण्ढा) हो।। यदि अपना मन शीतल (प्रशान्त) हो, तो संसार में कोई भी शत्रु नहीं हो सकता। अथवा यदि अहंकार को छोड़ दो, तो सभी जन दया करेंगे।। (श्रवण, मनन और निदिध्यासन-रूप) ज्ञान की हस्ति (हाथी) पर (आत्म-अनुभव-रूप) गद्दी डालकर सवार होइये। यह संसार कुत्ते के समान है, इसको झख मारकर भूँकने दीजिये। तात्पर्य यह कि इस तरह की हस्ती पर चढ़नेवाले, सांसारिक लोगों के व्यंग्य और स्तुति-निन्दा की परवाह न करें।। संसार में बाजाओं को बजने दो। तुम कलियुगी (तमोगुणी वृत्तिवाले) लोगों से कहीं छेड़छाड़ मत करो। तुमको दूसरे के लिए क्या पड़ा हुआ है? अपने आपके लिए निर्णय करो।। संत कबीर साहब कहते हैं कि (तुम्हारे) सिर पर परमात्मा (रक्षक) हैं, तुम क्यों डर रहे हो? हाथी पर चढ़कर दूर भागना नहीं चाहिए, चाहे हजारों कुत्ते भूँकते हों? तात्पर्य यह कि ज्ञान पाकर गम्भीर होना चाहिये, उतावला नहीं होना चाहिए।। (गाली देनेवाले की ओर से पहले) एक ही गाली आती है, (गाली सुननेवाले के द्वारा) उलटाये जाने पर अनेक गालियाँ हो जाती हैं। संत कबीर साहब कहते हैं कि (यदि गाली-श्रवणकर्त्ता-द्वारा) उसको उलटाया नहीं जाय, तो वह एक की एक ही गाली रहेगी।।
।। मूल पद्य ।।
ऐसी बानी बोलिये, मन का आपा खोय।
औरन को सीतल करै, आपहु सीतल होय।।
जग में बैरी कोइ नहीं, जो मन सीतल होय।
या आपा को डारि दे, दया करै सब कोय।।
हस्ती चढ़िये ज्ञान की, सहज दुलीचा डारि।
स्वान रूप संसार है, भूसन दे झख मारि।।
बाजन देह जंतरी, कलि कूँ कहीं मत छोड़।
तुझे पराई क्या परी, अपनी आप निबेड़।।
कबीर काहे को डरै, सिर पर सिरजनहार।
हस्ती चढ़ि दुरिये नहीं, कूकर भुँसै हजार।।
आवत गारी एक है, उलटत होय अनेक।
कहै कबीर नहिं उलटिये, वही एक की एक।।
अर्थ-अपने मन के अहंभाव को छोड़कर इस तरह का वचन बोलिए, जो अन्यों के चित्त को शीतल करे और स्वयं भी शीतल अर्थात् शान्त चित्त (ठण्ढा) हो।। यदि अपना मन शीतल (प्रशान्त) हो, तो संसार में कोई भी शत्रु नहीं हो सकता। अथवा यदि अहंकार को छोड़ दो, तो सभी जन दया करेंगे।। (श्रवण, मनन और निदिध्यासन-रूप) ज्ञान की हस्ति (हाथी) पर (आत्म-अनुभव-रूप) गद्दी डालकर सवार होइये। यह संसार कुत्ते के समान है, इसको झख मारकर भूँकने दीजिये। तात्पर्य यह कि इस तरह की हस्ती पर चढ़नेवाले, सांसारिक लोगों के व्यंग्य और स्तुति-निन्दा की परवाह न करें।। संसार में बाजाओं को बजने दो। तुम कलियुगी (तमोगुणी वृत्तिवाले) लोगों से कहीं छेड़छाड़ मत करो। तुमको दूसरे के लिए क्या पड़ा हुआ है? अपने आपके लिए निर्णय करो।। संत कबीर साहब कहते हैं कि (तुम्हारे) सिर पर परमात्मा (रक्षक) हैं, तुम क्यों डर रहे हो? हाथी पर चढ़कर दूर भागना नहीं चाहिए, चाहे हजारों कुत्ते भूँकते हों? तात्पर्य यह कि ज्ञान पाकर गम्भीर होना चाहिये, उतावला नहीं होना चाहिए।। (गाली देनेवाले की ओर से पहले) एक ही गाली आती है, (गाली सुननेवाले के द्वारा) उलटाये जाने पर अनेक गालियाँ हो जाती हैं। संत कबीर साहब कहते हैं कि (यदि गाली-श्रवणकर्त्ता-द्वारा) उसको उलटाया नहीं जाय, तो वह एक की एक ही गाली रहेगी।।
परिचय
Mobirise gives you the freedom to develop as many websites as you like given the fact that it is a desktop app.
Publish your website to a local drive, FTP or host on Amazon S3, Google Cloud, Github Pages. Don't be a hostage to just one platform or service provider.
Just drop the blocks into the page, edit content inline and publish - no technical skills required.