build your own website

(04) . संत कबीर साहब की वाणी
[83. उठा बगूला प्रेम का]


।। मूल पद्य, साखी ।।

उठा बगूला प्रेम का, तिनका उड़ा अकास ।
तिनका तिनका से मिला, तिनका तिनके पास ।।

पाठान्तर-
आया बगूला प्रेम का, तिनका उड़ा अकास ।
तिनका तिनका से मिला, तिनका तिनके पास ।।*
सबै रसायन मैं किया, प्रेम समान न कोय ।
रति एक तन में संचरै, सब तत कंचन होय ।।

पाठान्तर-
सबै रसायन मैं किया, प्रेम समान न कोय ।
रति इक तत में संचरै, सब तन कंचन होय ।।*
यहि तन का दिबला करौं, बाती मेलौं जीव ।
लोहू सींचौं तेल ज्यों, कब मुख देखौं पीव ।।

[* देखो-कबीर-साखी-संग्रह, बेलवेडियर प्रेस, प्रयाग ।]


।। मूल पद्य, साखी ।।

उठा बगूला प्रेम का, तिनका उड़ा अकास ।
तिनका तिनका से मिला, तिनका तिनके पास ।।

पाठान्तर-
आया बगूला प्रेम का, तिनका उड़ा अकास ।
तिनका तिनका से मिला, तिनका तिनके पास ।।*
सबै रसायन मैं किया, प्रेम समान न कोय ।
रति एक तन में संचरै, सब तत कंचन होय ।।

पाठान्तर-
सबै रसायन मैं किया, प्रेम समान न कोय ।
रति इक तत में संचरै, सब तन कंचन होय ।।*
यहि तन का दिबला करौं, बाती मेलौं जीव ।
लोहू सींचौं तेल ज्यों, कब मुख देखौं पीव ।।

अर्थ-प्रेम का बवण्डर उठा वा आया, तिनके (खर के टुकड़े) अर्थात् ईश्वर-भक्ति में कमजोर लोग-अनस्थिर प्रेमवाले भक्ति- गगन में उड़ गये अर्थात् विशेष भक्तिवाले मालूम होने लगे। वे लोग आपस में उस गगन में मिले, पुनः बवण्डर के समाप्त हो जाने पर उस गगन से नीचे गिरे और साधारण वा अपने सदृश तिनकों के पास पूर्ववत् आ पहुँचे। ‘तिनका तिनके पास’ का अभिप्राय है-अनस्थिर प्रेमवाले भजनाभ्यास में क्षणिक उन्नति से गिरकर पुनः शरीर- सम्बन्धी विषयों में आसक्त हो गये।। मैंने स्वास्थ्य को ठीक रखने के लिए अनेक प्रकार के रसायनों का प्रयोग किया; परन्तु ईश्वर-भक्ति के समान कोई भी औषधि नहीं जँची। ईश्वर-प्रेम की औषधि एक रत्ती अथवा अल्प मात्र में भी शरीर के अन्दर फैले, तो सब शरीर अथवा शरीर-सम्बन्धी सब तत्त्व सोना अर्थात् सुन्दर और नीरोग हो जाय।। ईश्वर-दर्शन के लिए अपने वर्त्तमान शरीर को दीपक बनाता हूँ, उसमें जीवात्मा की बत्ती देता हूँ और उसको रक्त-रूपी तेल से भिंगाकर जला देता हूँ और यह उत्कण्ठा लगी रहती है कि ईश्वर का दर्शन कब करूँ? तात्पर्य यह कि ईश्वर-दर्शन के विरह में शरीर-सुख को भूलकर साधन-भजन करूँगा। अपने को और अपने रक्त को बत्ती और तेल की तरह लगाऊँगा और जलाऊँगा। भजन में दीपक-ज्योति प्रकट होती है-
‘जैसे मन्दिर दीपक बारा । ऐसे जोत होत उजियारा ।।’
-तुलसी साहब
‘कबीर गुरु का भावता, दूरहिं से दीसन्त ।
तन छीना मन अनमना, जग से रूठि फिरन्त ।।
हँस हँस कन्त न पाइये, जिन पायाँ तिन रोय।
हाँसि खेले पिउ मिलैं, तो कौन दुहागिन होय ।।’
-कबीर साहब  


[* देखो-कबीर-साखी-संग्रह, बेलवेडियर प्रेस, प्रयाग ।]

परिचय

Mobirise gives you the freedom to develop as many websites as you like given the fact that it is a desktop app.

Publish your website to a local drive, FTP or host on Amazon S3, Google Cloud, Github Pages. Don't be a hostage to just one platform or service provider.

Just drop the blocks into the page, edit content inline and publish - no technical skills required.