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(04) . संत कबीर साहब की वाणी
[78. सन्त जन करत साहिबी तन में ]


।। मूल पद्य ।।

सन्त जन करत साहिबी तन में ।। टेक।।
पाँच पचीस फौज यह मन की, खेलैं भीतर तन में ।
सतगुरु सबद से मुरचा काटो, बैठो जुगत के घर में ।।1।।
बंक नाल का धावा करके, चढ़ि गये सूर गगन में ।
अष्ट कँवल दल फूल रह्यो है, परखे तत्त नजर में ।।2।।
पच्छिम दिसि की खिड़की खोलो, मन रहे प्रेम मगन में ।
काम क्रोध मद लोभ निवारो, लहरि लेहू या तन में ।।3।।
शंख घंट सहनाई बाजै, सोभा सिंध महल में ।
कहै कबीर सुनो भाइ साधो, अजर साहिब लख घट में ।।4।।


।। मूल पद्य ।।

सन्त जन करत साहिबी तन में ।। टेक।।
पाँच पचीस फौज यह मन की, खेलैं भीतर तन में ।
सतगुरु सबद से मुरचा काटो, बैठो जुगत के घर में ।।1।।
बंक नाल का धावा करके, चढ़ि गये सूर गगन में ।
अष्ट कँवल दल फूल रह्यो है, परखे तत्त नजर में ।।2।।
पच्छिम दिसि की खिड़की खोलो, मन रहे प्रेम मगन में ।
काम क्रोध मद लोभ निवारो, लहरि लेहू या तन में ।।3।।
शंख घंट सहनाई बाजै, सोभा सिंध महल में ।
कहै कबीर सुनो भाइ साधो, अजर साहिब लख घट में ।।4।।

शब्दार्थ-बंक नाल=टेढ़ी और कठिन राह।

भावार्थ-सन्तजन अपने शरीर के अन्दर में प्रभुताई या मालिकपना करते हैं।।टेक।। पाँच तत्त्व और पचीस प्रकृतियाँ मन की सेनाएँ हैं, जो शरीर के अन्दर खेलती हैं। युक्ति के घर में बैठकर अर्थात् अन्तस्सा- धना की युक्ति जानकर उसका अभ्यास करते हुए रहकर सद्गुरु-शब्द के द्वारा उपर्युक्त सेना के छिपकर रहने के बचाव-स्थान को काट डालो।।1।। बंकनाल होकर धावा करके शूरमा-भक्त-अभ्यासी गगन में चढ़ जाता है। उसके लिए पाँच तत्त्व और तीन गुणों के पृथक्-पृथक् रंग* वाले मण्डल खुल जाते हैं और वह उन तत्त्वों को देखकर परखता है।।2।। प्रकाश की ओर की खिड़की खोल दो, मन ईश्वर-विषयक प्रेम में डूबा रहेगा। काम, क्रोध, मद और लोभ को हटाकर इस शरीर की निर्मल तरंग में गोता लगाओ।।3।। शोभासिन्धु- महल में शंख, घंट और शहनाई बजती हैं। कबीर साहब कहते हैं कि हे साधु भाई! अविनाशी प्रभु के दर्शन घट में करो।।4।।  


[* स्याही सुरख सफेदी होई । जरद जाति जंगाली सोई ।।
-संत तुलसी साहब, हाथरस
स्याह अग्नि का, सुरख जल का, सफेदी आकाश का, जरद पृथ्वी का और जंगाली वायु का रंग है।
‘अकारः पीवर्णः स्याद्रजोगुण उदीरितः ।
उकारः सात्त्विकः शुक्लो मकारः कृष्ण तामसः ।।12,13।।’
-ध्यानविन्दूपनिषद्
अ=रजोगुण-पीत वर्ण। उ=सतोगुण-शुक्ल वर्ण। म्=तमोगुण-कृष्ण वर्ण।] 

परिचय

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