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(04) . संत कबीर साहब की वाणी
[52. नाद विन्दु तें अगम अगोचर]


।। मूल पद्य, साखी ।।

नाद विन्दु तें अगम अगोचर, पाँच तत्त्व तें न्यार ।
तीन गुनन तें भिन्न है, पुरुष अलक्ख अपार ।।


।। मूल पद्य, साखी ।।

नाद विन्दु तें अगम अगोचर, पाँच तत्त्व तें न्यार ।
तीन गुनन तें भिन्न है, पुरुष अलक्ख अपार ।।

पद्यार्थ-परम पुरुष पुरुषोत्तम परमात्मा विन्दु और नाद से अगम और अप्रत्यक्ष है; पाँच तत्त्वों से न्यारा है; तीनों गुणों (रज, सत्त्व एवं तम) से पृथक् है और अलख-अपार है।

तात्पर्यार्थ-नाद-विन्दु से अगम-अगोचर का तात्पर्य यह कि जबतक भक्त अभ्यासी को विन्दु और नाद की अनुभूति होती रहती है, तबतक परमात्मा के स्वरूप का अपरोक्ष ज्ञान उसको नहीं होता है। जब वह विन्दु-पद से ऊपर उठता है और नादों को ग्रहण करते हुए अन्त में निरुपाधिक आदिशब्द, आदिनाम, सारशब्द, प्रणव-ध्वनि को ग्रहण करता है और उसकी भी विलीनता की अनुभूति करता हुआ शब्दातीत पद को पहुँच जाता है, तब उसको अलख-अपार पुरुष की प्रत्यक्षता होती है। इस शब्दातीत पद का वर्णन उपनिषदों में भी किया गया है।
बीजाक्षरं परं विन्दुं नादं तस्योपरि स्थितम् ।
सशब्दं चाक्षरे क्षीणे निःशब्दं परमं पदम् ।।
-ध्यानविन्दूपनिषद्
अर्थात् परम विन्दु ही बीजाक्षर है; उसके ऊपर नाद है। नाद जब अक्षर (अनाश ब्रह्म) में लय हो जाता है, तो निःशब्द परम पद है।
अनाहतं तु यच्छब्दं तस्य शब्दस्य यत्परम् ।
तत्परं विन्दते यस्तु स योगी छिन्नसंशयः ।।
-ध्यानविन्दूपनिषद्
अर्थात् अनाहत के बाद जो निःशब्द परम पद है, योगी उसे सबसे बढ़कर समझते हैं, जहाँ सब संशय दूर हो जाते हैं।
तावदाकाश संकल्पो यावच्छब्दः प्रवर्तते ।
निःशब्दं तत्परं ब्रह्म परमात्मा समीयते ।।
-नादविन्दूपनिषद्
अर्थात् जबतक आकाश-संकल्प है, तबतक नाद की स्थिति रहती है, उसके परे अशब्द परब्रह्म परमात्मा है।  

परिचय

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