।। मूल पद्य, साखी ।।
गुरु साहब करि जानिये, रहिये सब्द समाय ।
मिलै तो दण्डवत बन्दगी, पल पल ध्यान लगाय ।।
।। मूल पद्य, साखी ।।
गुरु साहब करि जानिये, रहिये सब्द समाय ।
मिलै तो दण्डवत बन्दगी, पल पल ध्यान लगाय ।।
पद्यार्थ-गुरु को प्रभु (परमात्मा) के सदृश जानना चाहिए, शब्द में समाकर रहना चाहिए। वे मिल जाएँ, तो दण्डवत्-बन्दगी करनी चाहिए और उनके ध्यान में अपने मन को पल-पल लगाना चाहिए।।
टिप्पणी-‘रहिये शब्द समाय’ से तात्पर्य है-गुरु-उपदेश-वाक्य में श्रद्धा रखते हुए उसके अनुकूल आचरण करना तथा गुरु-संकेतित अन्तर्नाद में सुरत लगाकर रहना।
परिचय
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