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।। मूल पद्य ।।
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अपने घट दियना बारु रे ।। टेक।।
नाम का तेल सुरत कै बाती, ब्रह्म अगिन उद्गारु रे ।
जगमग जोत निहारु मंदिर में, तन मन धन सब वारु रे ।।1।।
झूठी जान जगत की आसा, बारम्बार बिसारु रे ।
कहै कबीर सुनो भाइ साधो, आपन काज सँवारु रे ।।2।।
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।। मूल पद्य ।।
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अपने घट दियना बारु रे ।। टेक।।
नाम का तेल सुरत कै बाती, ब्रह्म अगिन उद्गारु रे ।
जगमग जोत निहारु मंदिर में, तन मन धन सब वारु रे ।।1।।
झूठी जान जगत की आसा, बारम्बार बिसारु रे ।
कहै कबीर सुनो भाइ साधो, आपन काज सँवारु रे ।।2।।
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शब्दार्थ-बारु=जलाओ। उद्गारु=प्रज्वलित करो, प्रकट करो। वारु=न्योछावर करो, अर्पण करो। सँवारु=काम ठीक करो।
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पद्यार्थ-अपने शरीर में दीपक जलाओ। नाम के तेल में सुरत की बत्ती को रखकर ब्रह्माग्नि से प्रज्वलित करो। शरीर-मंदिर में जगमगाती हुई ज्योति का दर्शन करो और तन, मन, धन; इन सबको (इस दर्शन के लिए) न्योछावर कर दो। संसार की आशा को झूठी जानकर बारंबार भूल जाओ। कबीर साहब कहते हैं कि हे साधु भाई! सुनो, अपना काम ठीक करो।
टिप्पणी-अनहद नाद में सुरत को संलग्न रखना नाम के तेल में सुरत की बत्ती रखनी है और दृष्टियोग की सुगम विधि से दृष्टि- धारों को मिलाकर एकविन्दुता प्राप्त करनी ब्रह्म-अग्नि प्रकट करनी है। परमात्म-प्राप्ति और मुक्ति के लिए पूर्ण रूप से यत्न करना अपना काम ठीक करना है।
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परिचय
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