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।। मूल पद्य ।।
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साधो सब्द साधना कीजै ।
जेहि सब्द से प्रगट भये सब, सोइ सब्द गहि लीजै ।।टेक।।
सब्दहि गुरू सब्द सुनि सिष भे, सब्द सो बिरला बूझे ।
सोई सिष्य सोइ गुरू महातम, जेहि अन्तर गति सूझे ।।
सब्दै वेद पुरान कहत हैं, सब्दै सब ठहरावै ।
सब्दै सुर मुनि सन्त कहत हैं, सब्द भेद नहिं पावै ।।
सब्दै सुनि सुनि भेष धरत हैं, सब्द कहै अनुरागी ।
षट दरसन सब सब्द कहत हैं, सब्द कहै वैरागी ।।
सब्दै माया जग उतपानी, सब्दै केरि पसारा ।
कहै कबीर जहँ शब्द होत है, तवन भेद है न्यारा ।।
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।। मूल पद्य ।।
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साधो सब्द साधना कीजै ।
जेहि सब्द से प्रगट भये सब, सोइ सब्द गहि लीजै ।।टेक।।
सब्दहि गुरू सब्द सुनि सिष भे, सब्द सो बिरला बूझे ।
सोई सिष्य सोइ गुरू महातम, जेहि अन्तर गति सूझे ।।
सब्दै वेद पुरान कहत हैं, सब्दै सब ठहरावै ।
सब्दै सुर मुनि सन्त कहत हैं, सब्द भेद नहिं पावै ।।
सब्दै सुनि सुनि भेष धरत हैं, सब्द कहै अनुरागी ।
षट दरसन सब सब्द कहत हैं, सब्द कहै वैरागी ।।
सब्दै माया जग उतपानी, सब्दै केरि पसारा ।
कहै कबीर जहँ शब्द होत है, तवन भेद है न्यारा ।।
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शब्दार्थ-शब्द-साधना=सुरत-शब्द-योग, नादानुसंधान, ध्वन्यात्मक नाम का ध्यान। गति=चाल। महातम=माहात्म्य, गौरव, बड़ाई, महिमा। षट दरसन=छह दर्शन-शास्त्र (वेदान्त, सांख्य, योग, न्याय, मीमांसा और वैशेषिक)।
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पद्यार्थ-हे साधु! नादानुसंधान कीजिए। जिस शब्द से सारी सृष्टि की उत्पत्ति हुई है, उसी शब्द को पकड़ लीजिए। शब्द के द्वारा अर्थात् शब्द-द्वारा उपदेश करके ही गुरु होते हैं, शब्द सुनकर ही शिष्य हुए हैं और शब्द को कोई-कोई बूझते हैं। शिष्य और गुरु की वही महिमा है कि जिन्हें (शब्द-साधना-द्वारा) अन्तर (शरीर के भीतर) की चाल सूझती है। वेद और पुराण शब्द ही कहते हैं, शब्द ही को सब स्थिर करते हैं। देवता, मुनि और संत शब्द ही कहते हैं; परन्तु लोग शब्द का भेद नहीं पाते हैं। शब्द ही सुन-सुनकर साधु-वेश धरते हैं, अनुरागी लोग शब्द ही का कथन करते हैं। छहो शास्त्र शब्द ही कहते हैं और वैरागी भी शब्द ही कहते हैं। शब्द ही ने सब मायिक संसार को उत्पन्न किया है, शब्द का ही पसार है। कबीर साहब कहते हैं कि जहाँ शब्द होता है, वह भेद अलग ही है।
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टिप्पणी-कम्प के बिना सृष्टि नहीं हो सकती है। कम्प अपने सहचर शब्द के बिना नहीं होता है। अतएव सृष्टि के आदि में आदिशब्द अवश्य हुआ और इसी आदिशब्द से सब सृष्टि उपजी है, ऐसा मानना युक्तियुक्त है। इसी शब्द को स्फोट, ओ3म्, उद्गीथ, प्रणव, सारशब्द, सत्यनाम, सत्यशब्द और रामनाम कहते हैं। इसी शब्द को ग्रहण करने के लिए कबीर साहब कहते हैं। इसको इस भाँति कह सकते हैं-
अव्यक्त अनादि अनन्त अजय, अज आदि मूल परमातम जो ।
ध्वनि प्रथम स्फुटित परा धारा, जिनसे कहिये स्फोट है सो ।। 1 ।।
है स्फोट वही उद्गीथ वही, ब्रह्मनाद शब्दब्रह्म ओ3म् वही ।
अति मधुर प्रणव ध्वनि धार वही, है परमातम-प्रतीक वही ।। 2 ।।
प्रभु का ध्वन्यात्मक नाम वही, है सारशब्द सत्शब्द वही ।
है सत् चेतन अव्यक्त वही, व्यक्तों में व्यापक नाम वही ।। 3 ।।
है सर्वव्यापिनि ध्वनि राम वही, सर्वकर्षक हरि कृष्ण नाम वही ।
है परम प्रचंडिनी शक्ति वही, है शिव-शंकर हर नाम वही ।। 4 ।।
पुनि रामनाम है अगुण वही, है अकथ अगम पूर्ण काम वही ।
स्वर-व्यंजन-रहित अघोष वही, चेतन ध्वनि-सिंधु अदोष वही ।। 5 ।।
है एक ओ3म् सत्नाम वही, ऋषि-सेवित प्रभु का नाम वही ।
.................................. मुनि-सेवित गुरु का नाम वही ।
भजो ॐ ॐ प्रभु नाम यही, भजो ॐ ॐ ‘मेँहीँ’ नाम यही ।। 6 ।।
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परिचय
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