*********************
।। मूल पद्य ।।
*********************
हरि महि तनु है तनु महि हरि है, सर्व निरंतर सोई रे ।।
कहि कबीर राम नाम न छोड़ौ सहजे होइ सु होई रे ।।
इहु जीउ राम नाम लव लागै । जरा मरन छूटे भ्रम भागै ।।
अनहद सबद होत झनकार । जिह पौड़े प्रभु श्रीगोपाल ।।
राम जपतु तनु जरि किन जाइ । राम नाम चित्त रह्या समाइ ।।
*********************
*********************
।। मूल पद्य ।।
*********************
हरि महि तनु है तनु महि हरि है, सर्व निरंतर सोई रे ।।
कहि कबीर राम नाम न छोड़ौ सहजे होइ सु होई रे ।।
इहु जीउ राम नाम लव लागै । जरा मरन छूटे भ्रम भागै ।।
अनहद सबद होत झनकार । जिह पौड़े प्रभु श्रीगोपाल ।।
राम जपतु तनु जरि किन जाइ । राम नाम चित्त रह्या समाइ ।।
*********************
शब्दार्थ-निरन्तर=अविच्छिन्न, लगातार। जरा=बुढ़ापा। पोडै़=पैंड़े से, पैंरे से, रास्ते से। गो=पृथ्वी। पाल=पालक, पालन करनेवाला। गोपाल=पृथ्वी का पालन करनेवाला अर्थात् चराचर जगत् का पालनकर्त्ता।
*********************
पद्यार्थ-हरि (परमात्मा) में शरीर है, शरीर में हरि हैं, सबमें अविच्छिन्न रूप से वही (हरि) हैं। कबीर साहब कहते हैं कि राम-नाम नहीं छोड़ो, सहज ही में जो होगा, सो होगा। इस जीव की लौ या लगन रामनाम में लगे, तो बुढ़ापे और मृत्यु से छुटकारा मिल जाएगा और भ्रम भाग जाएगा (दूर हो जाएगा)। अनहद शब्द की झनकार होती है, जिस रास्ते से चलकर श्रीजगत्पालक प्रभु (परमात्मा) तक पहुँचते हैं। राम जपते-जपते शरीर जल क्यों न जाए अर्थात् मरण-पर्यन्त रामनाम जपना चाहिए। रामनाम चित्त में समाया हुआ है।
*********************
टिप्पणी-कबीर साहब के सेव्य, राम, हरि और प्रभु श्रीगोपाल मायातीत अलख हैं। वह अंजन अर्थात् माया को अल्प वा कम कहते हैं और निरंजन-माया-रहित को सार वा असल कहते हैं। अतएव उनकी वाणी में आये हुए उपास्य रूप में राम, हरि और गोपालादि शब्दों के अर्थ का उनके ख्याल के अनुकूल होना उचित है। वे रामनाम का जपना स्वीकार करते हैं और अनहद शब्द के मार्ग को प्रभु श्रीगोपाल तक जाने का भी कथन करते हैं। अतएव जप के वर्णात्मक रामनाम और अनहद शब्द अर्थात् ध्वन्यात्मक रामनाम; दोनों प्रकारों के नामों का वा शब्दों का भजन करना उनका सिद्धांत ठहरता है। नाम और शब्द के विषय में उनके निम्नोक्त वचन भी मिलते हैं-
राम राम सब कोइ कहै, नाम न चीन्है कोय ।
नाम चीन्हि सतगुरु मिलै, नाम कहावै सोय ।।
आदि नाम पारस अहै, मन है मैला लोह ।
परसत ही कंचन भया, छूटा बंधन मोह ।।
मुख कर की मेहनत मिटी, सतगुरु करी सहाय ।
घट में नाम प्रगट भया, बक बक मरे बलाय ।।
सहजे ही धुन होत है, हरदम घट के माहिं ।
सुरत सबद मेला भया, मुख की हाजत नाहिं ।।
*********************
परिचय
Mobirise gives you the freedom to develop as many websites as you like given the fact that it is a desktop app.
Publish your website to a local drive, FTP or host on Amazon S3, Google Cloud, Github Pages. Don't be a hostage to just one platform or service provider.
Just drop the blocks into the page, edit content inline and publish - no technical skills required.