सोरठा

अंतरजामी रामु सकुच सप्रेम कृपायतन,

चलिअ करिअ बिश्रामु यह बिचारि दृढ़ आनि मन ||२०१ ||

 

चौपाई

सखा बचन सुनि उर धरि धीरा, बास चले सुमिरत रघुबीरा ||

यह सुधि पाइ नगर नर नारी, चले बिलोकन आरत भारी ||

परदखिना करि करहिं प्रनामा, देहिं कैकइहि खोरि निकामा ||

भरी भरि बारि बिलोचन लेंहीं, बाम बिधाताहि दूषन देहीं ||

एक सराहहिं भरत सनेहू, कोउ कह नृपति निबाहेउ नेहू ||

निंदहिं आपु सराहि निषादहि, को कहि सकइ बिमोह बिषादहि ||

एहि बिधि राति लोगु सबु जागा, भा भिनुसार गुदारा लागा ||

गुरहि सुनावँ चढ़ाइ सुहाईं, नईं नाव सब मातु चढ़ाईं ||

दंड चारि महँ भा सबु पारा, उतरि भरत तब सबहि सँभारा ||

 

दोहा

प्रातक्रिया करि मातु पद बंदि गुरहि सिरु नाइ,

आगें किए निषाद गन दीन्हेउ कटकु चलाइ ||२०२ ||

 

चौपाई

कियउ निषादनाथु अगुआईं, मातु पालकीं सकल चलाईं ||

साथ बोलाइ भाइ लघु दीन्हा, बिप्रन्ह सहित गवनु गुर कीन्हा ||

आपु सुरसरिहि कीन्ह प्रनामू, सुमिरे लखन सहित सिय रामू ||

गवने भरत पयोदेहिं पाए, कोतल संग जाहिं डोरिआए ||

कहहिं सुसेवक बारहिं बारा, होइअ नाथ अस्व असवारा ||

रामु पयोदेहि पायँ सिधाए, हम कहँ रथ गज बाजि बनाए ||

सिर भर जाउँ उचित अस मोरा, सब तें सेवक धरमु कठोरा ||

देखि भरत गति सुनि मृदु बानी, सब सेवक गन गरहिं गलानी ||

 

दोहा

भरत तीसरे पहर कहँ कीन्ह प्रबेसु प्रयाग,

कहत राम सिय राम सिय उमगि उमगि अनुराग ||२०३ ||

 

चौपाई

झलका झलकत पायन्ह कैंसें, पंकज कोस ओस कन जैसें ||

भरत पयादेहिं आए आजू, भयउ दुखित सुनि सकल समाजू ||

खबरि लीन्ह सब लोग नहाए, कीन्ह प्रनामु त्रिबेनिहिं आए ||

सबिधि सितासित नीर नहाने, दिए दान महिसुर सनमाने ||

देखत स्यामल धवल हलोरे, पुलकि सरीर भरत कर जोरे ||

सकल काम प्रद तीरथराऊ, बेद बिदित जग प्रगट प्रभाऊ ||

मागउँ भीख त्यागि निज धरमू, आरत काह न करइ कुकरमू ||

अस जियँ जानि सुजान सुदानी, सफल करहिं जग जाचक बानी ||

 

दोहा

अरथ न धरम न काम रुचि गति न चहउँ निरबान,

जनम जनम रति राम पद यह बरदानु न आन ||२०४ ||

 

चौपाई

जानहुँ रामु कुटिल करि मोही, लोग कहउ गुर साहिब द्रोही ||

सीता राम चरन रति मोरें, अनुदिन बढ़उ अनुग्रह तोरें ||

जलदु जनम भरि सुरति बिसारउ, जाचत जलु पबि पाहन डारउ ||

चातकु रटनि घटें घटि जाई, बढ़े प्रेमु सब भाँति भलाई ||

कनकहिं बान चढ़इ जिमि दाहें, तिमि प्रियतम पद नेम निबाहें ||

भरत बचन सुनि माझ त्रिबेनी, भइ मृदु बानि सुमंगल देनी ||

तात भरत तुम्ह सब बिधि साधू, राम चरन अनुराग अगाधू ||

बाद गलानि करहु मन माहीं, तुम्ह सम रामहि कोउ प्रिय नाहीं ||

 

दोहा

तनु पुलकेउ हियँ हरषु सुनि बेनि बचन अनुकूल,

भरत धन्य कहि धन्य सुर हरषित बरषहिं फूल ||२०५ ||

 

चौपाई

प्रमुदित तीरथराज निवासी, बैखानस बटु गृही उदासी ||

कहहिं परसपर मिलि दस पाँचा, भरत सनेह सीलु सुचि साँचा ||

सुनत राम गुन ग्राम सुहाए, भरद्वाज मुनिबर पहिं आए ||

दंड प्रनामु करत मुनि देखे, मूरतिमंत भाग्य निज लेखे ||

धाइ उठाइ लाइ उर लीन्हे, दीन्हि असीस कृतारथ कीन्हे ||

आसनु दीन्ह नाइ सिरु बैठे, चहत सकुच गृहँ जनु भजि पैठे ||

मुनि पूँछब कछु यह बड़ सोचू, बोले रिषि लखि सीलु सँकोचू ||

सुनहु भरत हम सब सुधि पाई, बिधि करतब पर किछु न बसाई ||

 

दोहा

तुम्ह गलानि जियँ जनि करहु समुझी मातु करतूति,

तात कैकइहि दोसु नहिं गई गिरा मति धूति ||२०६ ||

 

चौपाई

यहउ कहत भल कहिहि न कोऊ, लोकु बेद बुध संमत दोऊ ||

तात तुम्हार बिमल जसु गाई, पाइहि लोकउ बेदु बड़ाई ||

लोक बेद संमत सबु कहई, जेहि पितु देइ राजु सो लहई ||

राउ सत्यब्रत तुम्हहि बोलाई, देत राजु सुखु धरमु बड़ाई ||

राम गवनु बन अनरथ मूला, जो सुनि सकल बिस्व भइ सूला ||

सो भावी बस रानि अयानी, करि कुचालि अंतहुँ पछितानी ||

तहँउँ तुम्हार अलप अपराधू, कहै सो अधम अयान असाधू ||

करतेहु राजु त तुम्हहि न दोषू, रामहि होत सुनत संतोषू ||

 

दोहा

अब अति कीन्हेहु भरत भल तुम्हहि उचित मत एहु,

सकल सुमंगल मूल जग रघुबर चरन सनेहु ||२०७ ||

 

चौपाई

सो तुम्हार धनु जीवनु प्राना, भूरिभाग को तुम्हहि समाना ||

यह तम्हार आचरजु न ताता, दसरथ सुअन राम प्रिय भ्राता ||

सुनहु भरत रघुबर मन माहीं, पेम पात्रु तुम्ह सम कोउ नाहीं ||

लखन राम सीतहि अति प्रीती, निसि सब तुम्हहि सराहत बीती ||

जाना मरमु नहात प्रयागा, मगन होहिं तुम्हरें अनुरागा ||

तुम्ह पर अस सनेहु रघुबर कें, सुख जीवन जग जस जड़ नर कें ||

यह न अधिक रघुबीर बड़ाई, प्रनत कुटुंब पाल रघुराई ||

तुम्ह तौ भरत मोर मत एहू, धरें देह जनु राम सनेहू ||

 

दोहा

तुम्ह कहँ भरत कलंक यह हम सब कहँ उपदेसु,

राम भगति रस सिद्धि हित भा यह समउ गनेसु ||२०८ ||

 

चौपाई

नव बिधु बिमल तात जसु तोरा, रघुबर किंकर कुमुद चकोरा ||

उदित सदा अँथइहि कबहूँ ना, घटिहि न जग नभ दिन दिन दूना ||

कोक तिलोक प्रीति अति करिही, प्रभु प्रताप रबि छबिहि न हरिही ||

निसि दिन सुखद सदा सब काहू, ग्रसिहि न कैकइ करतबु राहू ||

पूरन राम सुपेम पियूषा, गुर अवमान दोष नहिं दूषा ||

राम भगत अब अमिअँ अघाहूँ, कीन्हेहु सुलभ सुधा बसुधाहूँ ||

भूप भगीरथ सुरसरि आनी, सुमिरत सकल सुंमगल खानी ||

दसरथ गुन गन बरनि न जाहीं, अधिकु कहा जेहि सम जग नाहीं ||

 

दोहा

जासु सनेह सकोच बस राम प्रगट भए आइ ||

जे हर हिय नयननि कबहुँ निरखे नहीं अघाइ ||२०९ ||

 

चौपाई

कीरति बिधु तुम्ह कीन्ह अनूपा, जहँ बस राम पेम मृगरूपा ||

तात गलानि करहु जियँ जाएँ, डरहु दरिद्रहि पारसु पाएँ ||

सुनहु भरत हम झूठ न कहहीं, उदासीन तापस बन रहहीं ||

सब साधन कर सुफल सुहावा, लखन राम सिय दरसनु पावा ||

तेहि फल कर फलु दरस तुम्हारा, सहित पयाग सुभाग हमारा ||

भरत धन्य तुम्ह जसु जगु जयऊ, कहि अस पेम मगन पुनि भयऊ ||

सुनि मुनि बचन सभासद हरषे, साधु सराहि सुमन सुर बरषे ||

धन्य धन्य धुनि गगन पयागा, सुनि सुनि भरतु मगन अनुरागा ||

 

दोहा

पुलक गात हियँ रामु सिय सजल सरोरुह नैन,

करि प्रनामु मुनि मंडलिहि बोले गदगद बैन ||२१० ||

 

चौपाई

मुनि समाजु अरु तीरथराजू, साँचिहुँ सपथ अघाइ अकाजू ||

एहिं थल जौं किछु कहिअ बनाई, एहि सम अधिक न अघ अधमाई ||

तुम्ह सर्बग्य कहउँ सतिभाऊ, उर अंतरजामी रघुराऊ ||

मोहि न मातु करतब कर सोचू, नहिं दुखु जियँ जगु जानिहि पोचू ||

नाहिन डरु बिगरिहि परलोकू, पितहु मरन कर मोहि न सोकू ||

सुकृत सुजस भरि भुअन सुहाए, लछिमन राम सरिस सुत पाए ||

राम बिरहँ तजि तनु छनभंगू, भूप सोच कर कवन प्रसंगू ||

राम लखन सिय बिनु पग पनहीं, करि मुनि बेष फिरहिं बन बनही ||

 

दोहा

अजिन बसन फल असन महि सयन डासि कुस पात,

बसि तरु तर नित सहत हिम आतप बरषा बात ||२११ ||

 

चौपाई

एहि दुख दाहँ दहइ दिन छाती, भूख न बासर नीद न राती ||

एहि कुरोग कर औषधु नाहीं, सोधेउँ सकल बिस्व मन माहीं ||

मातु कुमत बढ़ई अघ मूला, तेहिं हमार हित कीन्ह बँसूला ||

कलि कुकाठ कर कीन्ह कुजंत्रू, गाड़ि अवधि पढ़ि कठिन कुमंत्रु ||

मोहि लगि यहु कुठाटु तेहिं ठाटा, घालेसि सब जगु बारहबाटा ||

मिटइ कुजोगु राम फिरि आएँ, बसइ अवध नहिं आन उपाएँ ||

भरत बचन सुनि मुनि सुखु पाई, सबहिं कीन्ह बहु भाँति बड़ाई ||

तात करहु जनि सोचु बिसेषी, सब दुखु मिटहि राम पग देखी ||

 

दोहा

करि प्रबोध मुनिबर कहेउ अतिथि पेमप्रिय होहु,

कंद मूल फल फूल हम देहिं लेहु करि छोहु ||२१२ ||

 

चौपाई

सुनि मुनि बचन भरत हिँय सोचू, भयउ कुअवसर कठिन सँकोचू ||

जानि गरुइ गुर गिरा बहोरी, चरन बंदि बोले कर जोरी ||

सिर धरि आयसु करिअ तुम्हारा, परम धरम यहु नाथ हमारा ||

भरत बचन मुनिबर मन भाए, सुचि सेवक सिष निकट बोलाए ||

चाहिए कीन्ह भरत पहुनाई, कंद मूल फल आनहु जाई ||

भलेहीं नाथ कहि तिन्ह सिर नाए, प्रमुदित निज निज काज सिधाए ||

मुनिहि सोच पाहुन बड़ नेवता, तसि पूजा चाहिअ जस देवता ||

सुनि रिधि सिधि अनिमादिक आई, आयसु होइ सो करहिं गोसाई ||

 

दोहा

राम बिरह ब्याकुल भरतु सानुज सहित समाज,

पहुनाई करि हरहु श्रम कहा मुदित मुनिराज ||२१३ ||

 

चौपाई

रिधि सिधि सिर धरि मुनिबर बानी, बड़भागिनि आपुहि अनुमानी ||

कहहिं परसपर सिधि समुदाई, अतुलित अतिथि राम लघु भाई ||

मुनि पद बंदि करिअ सोइ आजू, होइ सुखी सब राज समाजू ||

अस कहि रचेउ रुचिर गृह नाना, जेहि बिलोकि बिलखाहिं बिमाना ||

भोग बिभूति भूरि भरि राखे, देखत जिन्हहि अमर अभिलाषे ||

दासीं दास साजु सब लीन्हें, जोगवत रहहिं मनहि मनु दीन्हें ||

सब समाजु सजि सिधि पल माहीं, जे सुख सुरपुर सपनेहुँ नाहीं ||

प्रथमहिं बास दिए सब केही, सुंदर सुखद जथा रुचि जेही ||

 

दोहा

बहुरि सपरिजन भरत कहुँ रिषि अस आयसु दीन्ह,

बिधि बिसमय दायकु बिभव मुनिबर तपबल कीन्ह ||२१४ ||

 

चौपाई

मुनि प्रभाउ जब भरत बिलोका, सब लघु लगे लोकपति लोका ||

सुख समाजु नहिं जाइ बखानी, देखत बिरति बिसारहीं ग्यानी ||

आसन सयन सुबसन बिताना, बन बाटिका बिहग मृग नाना ||

सुरभि फूल फल अमिअ समाना, बिमल जलासय बिबिध बिधाना,

असन पान सुच अमिअ अमी से, देखि लोग सकुचात जमी से ||

सुर सुरभी सुरतरु सबही कें, लखि अभिलाषु सुरेस सची कें ||

रितु बसंत बह त्रिबिध बयारी, सब कहँ सुलभ पदारथ चारी ||

स्त्रक चंदन बनितादिक भोगा, देखि हरष बिसमय बस लोगा ||

 

दोहा

संपत चकई भरतु चक मुनि आयस खेलवार ||

तेहि निसि आश्रम पिंजराँ राखे भा भिनुसार ||२१५ ||

 

मासपारायण, उन्नीसवाँ विश्राम

 

चौपाई

कीन्ह निमज्जनु तीरथराजा, नाइ मुनिहि सिरु सहित समाजा ||

रिषि आयसु असीस सिर राखी, करि दंडवत बिनय बहु भाषी ||

पथ गति कुसल साथ सब लीन्हे, चले चित्रकूटहिं चितु दीन्हें ||

रामसखा कर दीन्हें लागू, चलत देह धरि जनु अनुरागू ||

नहिं पद त्रान सीस नहिं छाया, पेमु नेमु ब्रतु धरमु अमाया ||

लखन राम सिय पंथ कहानी, पूँछत सखहि कहत मृदु बानी ||

राम बास थल बिटप बिलोकें, उर अनुराग रहत नहिं रोकैं ||

दैखि दसा सुर बरिसहिं फूला, भइ मृदु महि मगु मंगल मूला ||

 

दोहा

किएँ जाहिं छाया जलद सुखद बहइ बर बात,

तस मगु भयउ न राम कहँ जस भा भरतहि जात ||२१६ ||

 

चौपाई

जड़ चेतन मग जीव घनेरे, जे चितए प्रभु जिन्ह प्रभु हेरे ||

ते सब भए परम पद जोगू, भरत दरस मेटा भव रोगू ||

यह बड़ि बात भरत कइ नाहीं, सुमिरत जिनहि रामु मन माहीं ||

बारक राम कहत जग जेऊ, होत तरन तारन नर तेऊ ||

भरतु राम प्रिय पुनि लघु भ्राता, कस न होइ मगु मंगलदाता ||

सिद्ध साधु मुनिबर अस कहहीं, भरतहि निरखि हरषु हियँ लहहीं ||

देखि प्रभाउ सुरेसहि सोचू, जगु भल भलेहि पोच कहुँ पोचू ||

गुर सन कहेउ करिअ प्रभु सोई, रामहि भरतहि भेंट न होई ||

 

दोहा

रामु सँकोची प्रेम बस भरत सपेम पयोधि,

बनी बात बेगरन चहति करिअ जतनु छलु सोधि ||२१७ ||

 

चौपाई

बचन सुनत सुरगुरु मुसकाने, सहसनयन बिनु लोचन जाने ||

मायापति सेवक सन माया, करइ त उलटि परइ सुरराया ||

तब किछु कीन्ह राम रुख जानी, अब कुचालि करि होइहि हानी ||

सुनु सुरेस रघुनाथ सुभाऊ, निज अपराध रिसाहिं न काऊ ||

जो अपराधु भगत कर करई, राम रोष पावक सो जरई ||

लोकहुँ बेद बिदित इतिहासा, यह महिमा जानहिं दुरबासा ||

भरत सरिस को राम सनेही, जगु जप राम रामु जप जेही ||

 

दोहा

मनहुँ न आनिअ अमरपति रघुबर भगत अकाजु,

अजसु लोक परलोक दुख दिन दिन सोक समाजु ||२१८ ||

 

चौपाई

सुनु सुरेस उपदेसु हमारा, रामहि सेवकु परम पिआरा ||

मानत सुखु सेवक सेवकाई, सेवक बैर बैरु अधिकाई ||

जद्यपि सम नहिं राग न रोषू, गहहिं न पाप पूनु गुन दोषू ||

करम प्रधान बिस्व करि राखा, जो जस करइ सो तस फलु चाखा ||

तदपि करहिं सम बिषम बिहारा, भगत अभगत हृदय अनुसारा ||

अगुन अलेप अमान एकरस, रामु सगुन भए भगत पेम बस ||

राम सदा सेवक रुचि राखी, बेद पुरान साधु सुर साखी ||

अस जियँ जानि तजहु कुटिलाई, करहु भरत पद प्रीति सुहाई ||

 

दोहा

राम भगत परहित निरत पर दुख दुखी दयाल,

भगत सिरोमनि भरत तें जनि डरपहु सुरपाल ||२१९ ||

 

चौपाई

सत्यसंध प्रभु सुर हितकारी, भरत राम आयस अनुसारी ||

स्वारथ बिबस बिकल तुम्ह होहू, भरत दोसु नहिं राउर मोहू ||

सुनि सुरबर सुरगुर बर बानी, भा प्रमोदु मन मिटी गलानी ||

बरषि प्रसून हरषि सुरराऊ, लगे सराहन भरत सुभाऊ ||

एहि बिधि भरत चले मग जाहीं, दसा देखि मुनि सिद्ध सिहाहीं ||

जबहिं रामु कहि लेहिं उसासा, उमगत पेमु मनहँ चहु पासा ||

द्रवहिं बचन सुनि कुलिस पषाना, पुरजन पेमु न जाइ बखाना ||

बीच बास करि जमुनहिं आए, निरखि नीरु लोचन जल छाए ||

 

दोहा

रघुबर बरन बिलोकि बर बारि समेत समाज,

होत मगन बारिधि बिरह चढ़े बिबेक जहाज ||२२० ||

 

चौपाई

जमुन तीर तेहि दिन करि बासू, भयउ समय सम सबहि सुपासू ||

रातहिं घाट घाट की तरनी, आईं अगनित जाहिं न बरनी ||

प्रात पार भए एकहि खेंवाँ, तोषे रामसखा की सेवाँ ||

चले नहाइ नदिहि सिर नाई, साथ निषादनाथ दोउ भाई ||

आगें मुनिबर बाहन आछें, राजसमाज जाइ सबु पाछें ||

तेहिं पाछें दोउ बंधु पयादें, भूषन बसन बेष सुठि सादें ||

सेवक सुह्रद सचिवसुत साथा, सुमिरत लखनु सीय रघुनाथा ||

जहँ जहँ राम बास बिश्रामा, तहँ तहँ करहिं सप्रेम प्रनामा ||

 

दोहा

मगबासी नर नारि सुनि धाम काम तजि धाइ,

देखि सरूप सनेह सब मुदित जनम फलु पाइ ||२२१ ||

 

चौपाई

कहहिं सपेम एक एक पाहीं, रामु लखनु सखि होहिं कि नाहीं ||

बय बपु बरन रूप सोइ आली, सीलु सनेहु सरिस सम चाली ||

बेषु न सो सखि सीय न संगा, आगें अनी चली चतुरंगा ||

नहिं प्रसन्न मुख मानस खेदा, सखि संदेहु होइ एहिं भेदा ||

तासु तरक तियगन मन मानी, कहहिं सकल तेहि सम न सयानी ||

तेहि सराहि बानी फुरि पूजी, बोली मधुर बचन तिय दूजी ||

कहि सपेम सब कथाप्रसंगू, जेहि बिधि राम राज रस भंगू ||

भरतहि बहुरि सराहन लागी, सील सनेह सुभाय सुभागी ||

 

दोहा

चलत पयादें खात फल पिता दीन्ह तजि राजु,

जात मनावन रघुबरहि भरत सरिस को आजु ||२२२ ||

 

चौपाई

भायप भगति भरत आचरनू, कहत सुनत दुख दूषन हरनू ||

जो कछु कहब थोर सखि सोई, राम बंधु अस काहे न होई ||

हम सब सानुज भरतहि देखें, भइन्ह धन्य जुबती जन लेखें ||

सुनि गुन देखि दसा पछिताहीं, कैकइ जननि जोगु सुतु नाहीं ||

कोउ कह दूषनु रानिहि नाहिन, बिधि सबु कीन्ह हमहि जो दाहिन ||

कहँ हम लोक बेद बिधि हीनी, लघु तिय कुल करतूति मलीनी ||

बसहिं कुदेस कुगाँव कुबामा, कहँ यह दरसु पुन्य परिनामा ||

अस अनंदु अचिरिजु प्रति ग्रामा, जनु मरुभूमि कलपतरु जामा ||

 

दोहा

भरत दरसु देखत खुलेउ मग लोगन्ह कर भागु,

जनु सिंघलबासिन्ह भयउ बिधि बस सुलभ प्रयागु ||२२३ ||

 

चौपाई

निज गुन सहित राम गुन गाथा, सुनत जाहिं सुमिरत रघुनाथा ||

तीरथ मुनि आश्रम सुरधामा, निरखि निमज्जहिं करहिं प्रनामा ||

मनहीं मन मागहिं बरु एहू, सीय राम पद पदुम सनेहू ||

मिलहिं किरात कोल बनबासी, बैखानस बटु जती उदासी ||

करि प्रनामु पूँछहिं जेहिं तेही, केहि बन लखनु रामु बैदेही ||

ते प्रभु समाचार सब कहहीं, भरतहि देखि जनम फलु लहहीं ||

जे जन कहहिं कुसल हम देखे, ते प्रिय राम लखन सम लेखे ||

एहि बिधि बूझत सबहि सुबानी, सुनत राम बनबास कहानी ||

 

दोहा

तेहि बासर बसि प्रातहीं चले सुमिरि रघुनाथ,

राम दरस की लालसा भरत सरिस सब साथ ||२२४ ||

 

चौपाई

मंगल सगुन होहिं सब काहू, फरकहिं सुखद बिलोचन बाहू ||

भरतहि सहित समाज उछाहू, मिलिहहिं रामु मिटहि दुख दाहू ||

करत मनोरथ जस जियँ जाके, जाहिं सनेह सुराँ सब छाके ||

सिथिल अंग पग मग डगि डोलहिं, बिहबल बचन पेम बस बोलहिं ||

रामसखाँ तेहि समय देखावा, सैल सिरोमनि सहज सुहावा ||

जासु समीप सरित पय तीरा, सीय समेत बसहिं दोउ बीरा ||

देखि करहिं सब दंड प्रनामा, कहि जय जानकि जीवन रामा ||

प्रेम मगन अस राज समाजू, जनु फिरि अवध चले रघुराजू ||

 

दोहा

भरत प्रेमु तेहि समय जस तस कहि सकइ न सेषु,

कबिहिं अगम जिमि ब्रह्मसुखु अह मम मलिन जनेषु ||२२५||

 

चौपाई

सकल सनेह सिथिल रघुबर कें, गए कोस दुइ दिनकर ढरकें ||

जलु थलु देखि बसे निसि बीतें, कीन्ह गवन रघुनाथ पिरीतें ||

उहाँ रामु रजनी अवसेषा, जागे सीयँ सपन अस देखा ||

सहित समाज भरत जनु आए, नाथ बियोग ताप तन ताए ||

सकल मलिन मन दीन दुखारी, देखीं सासु आन अनुहारी ||

सुनि सिय सपन भरे जल लोचन, भए सोचबस सोच बिमोचन ||

लखन सपन यह नीक न होई, कठिन कुचाह सुनाइहि कोई ||

अस कहि बंधु समेत नहाने, पूजि पुरारि साधु सनमाने ||

 

छंद

सनमानि सुर मुनि बंदि बैठे उत्तर दिसि देखत भए,

नभ धूरि खग मृग भूरि भागे बिकल प्रभु आश्रम गए ||

तुलसी उठे अवलोकि कारनु काह चित सचकित रहे,

सब समाचार किरात कोलन्हि आइ तेहि अवसर कहे ||

 

दोहा

सुनत सुमंगल बैन मन प्रमोद तन पुलक भर,

सरद सरोरुह नैन तुलसी भरे सनेह जल ||२२६ ||

 

चौपाई

बहुरि सोचबस भे सियरवनू, कारन कवन भरत आगवनू ||

एक आइ अस कहा बहोरी, सेन संग चतुरंग न थोरी ||

सो सुनि रामहि भा अति सोचू, इत पितु बच इत बंधु सकोचू ||

भरत सुभाउ समुझि मन माहीं, प्रभु चित हित थिति पावत नाही ||

समाधान तब भा यह जाने, भरतु कहे महुँ साधु सयाने ||

लखन लखेउ प्रभु हृदयँ खभारू, कहत समय सम नीति बिचारू ||

बिनु पूँछ कछु कहउँ गोसाईं, सेवकु समयँ न ढीठ ढिठाई ||

तुम्ह सर्बग्य सिरोमनि स्वामी, आपनि समुझि कहउँ अनुगामी ||

 

दोहा

नाथ सुह्रद सुठि सरल चित सील सनेह निधान ||

सब पर प्रीति प्रतीति जियँ जानिअ आपु समान ||२२७ ||

 

चौपाई

बिषई जीव पाइ प्रभुताई, मूढ़ मोह बस होहिं जनाई ||

भरतु नीति रत साधु सुजाना, प्रभु पद प्रेम सकल जगु जाना ||

तेऊ आजु राम पदु पाई, चले धरम मरजाद मेटाई ||

कुटिल कुबंध कुअवसरु ताकी, जानि राम बनवास एकाकी ||

करि कुमंत्रु मन साजि समाजू, आए करै अकंटक राजू ||

कोटि प्रकार कलपि कुटलाई, आए दल बटोरि दोउ भाई ||

जौं जियँ होति न कपट कुचाली, केहि सोहाति रथ बाजि गजाली ||

भरतहि दोसु देइ को जाएँ, जग बौराइ राज पदु पाएँ ||

 

दोहा

ससि गुर तिय गामी नघुषु चढ़ेउ भूमिसुर जान,

लोक बेद तें बिमुख भा अधम न बेन समान ||२२८ ||

 

चौपाई

सहसबाहु सुरनाथु त्रिसंकू, केहि न राजमद दीन्ह कलंकू ||

भरत कीन्ह यह उचित उपाऊ, रिपु रिन रंच न राखब काऊ ||

एक कीन्हि नहिं भरत भलाई, निदरे रामु जानि असहाई ||

समुझि परिहि सोउ आजु बिसेषी, समर सरोष राम मुखु पेखी ||

एतना कहत नीति रस भूला, रन रस बिटपु पुलक मिस फूला ||

प्रभु पद बंदि सीस रज राखी, बोले सत्य सहज बलु भाषी ||

अनुचित नाथ न मानब मोरा, भरत हमहि उपचार न थोरा ||

कहँ लगि सहिअ रहिअ मनु मारें, नाथ साथ धनु हाथ हमारें ||

 

दोहा

छत्रि जाति रघुकुल जनमु राम अनुग जगु जान,

लातहुँ मारें चढ़ति सिर नीच को धूरि समान ||२२९ ||

 

चौपाई

उठि कर जोरि रजायसु मागा, मनहुँ बीर रस सोवत जागा ||

बाँधि जटा सिर कसि कटि भाथा, साजि सरासनु सायकु हाथा ||

आजु राम सेवक जसु लेऊँ, भरतहि समर सिखावन देऊँ ||

राम निरादर कर फलु पाई, सोवहुँ समर सेज दोउ भाई ||

आइ बना भल सकल समाजू, प्रगट करउँ रिस पाछिल आजू ||

जिमि करि निकर दलइ मृगराजू, लेइ लपेटि लवा जिमि बाजू ||

तैसेहिं भरतहि सेन समेता, सानुज निदरि निपातउँ खेता ||

जौं सहाय कर संकरु आई, तौ मारउँ रन राम दोहाई ||

 

दोहा

अति सरोष माखे लखनु लखि सुनि सपथ प्रवान,

सभय लोक सब लोकपति चाहत भभरि भगान ||२३० ||

 

चौपाई

जगु भय मगन गगन भइ बानी, लखन बाहुबलु बिपुल बखानी ||

तात प्रताप प्रभाउ तुम्हारा, को कहि सकइ को जाननिहारा ||

अनुचित उचित काजु किछु होऊ, समुझि करिअ भल कह सबु कोऊ ||

सहसा करि पाछैं पछिताहीं, कहहिं बेद बुध ते बुध नाहीं ||

सुनि सुर बचन लखन सकुचाने, राम सीयँ सादर सनमाने ||

कही तात तुम्ह नीति सुहाई, सब तें कठिन राजमदु भाई ||

जो अचवँत नृप मातहिं तेई, नाहिन साधुसभा जेहिं सेई ||

सुनहु लखन भल भरत सरीसा, बिधि प्रपंच महँ सुना न दीसा ||

 

दोहा

भरतहि होइ न राजमदु बिधि हरि हर पद पाइ ||

कबहुँ कि काँजी सीकरनि छीरसिंधु बिनसाइ ||२३१ ||

 

चौपाई

तिमिरु तरुन तरनिहि मकु गिलई, गगनु मगन मकु मेघहिं मिलई ||

गोपद जल बूड़हिं घटजोनी, सहज छमा बरु छाड़ै छोनी ||

मसक फूँक मकु मेरु उड़ाई, होइ न नृपमदु भरतहि भाई ||

लखन तुम्हार सपथ पितु आना, सुचि सुबंधु नहिं भरत समाना ||

सगुन खीरु अवगुन जलु ताता, मिलइ रचइ परपंचु बिधाता ||

भरतु हंस रबिबंस तड़ागा, जनमि कीन्ह गुन दोष बिभागा ||

गहि गुन पय तजि अवगुन बारी, निज जस जगत कीन्हि उजिआरी ||

कहत भरत गुन सीलु सुभाऊ, पेम पयोधि मगन रघुराऊ ||

 

दोहा

सुनि रघुबर बानी बिबुध देखि भरत पर हेतु,

सकल सराहत राम सो प्रभु को कृपानिकेतु ||२३२ ||

 

चौपाई

जौं न होत जग जनम भरत को, सकल धरम धुर धरनि धरत को ||

कबि कुल अगम भरत गुन गाथा, को जानइ तुम्ह बिनु रघुनाथा ||

लखन राम सियँ सुनि सुर बानी, अति सुखु लहेउ न जाइ बखानी ||

इहाँ भरतु सब सहित सहाए, मंदाकिनीं पुनीत नहाए ||

सरित समीप राखि सब लोगा, मागि मातु गुर सचिव नियोगा ||

चले भरतु जहँ सिय रघुराई, साथ निषादनाथु लघु भाई ||

समुझि मातु करतब सकुचाहीं, करत कुतरक कोटि मन माहीं ||

रामु लखनु सिय सुनि मम नाऊँ, उठि जनि अनत जाहिं तजि ठाऊँ ||

 

दोहा

मातु मते महुँ मानि मोहि जो कछु करहिं सो थोर,

अघ अवगुन छमि आदरहिं समुझि आपनी ओर ||२३३ ||

 

चौपाई

जौं परिहरहिं मलिन मनु जानी, जौ सनमानहिं सेवकु मानी ||

मोरें सरन रामहि की पनही, राम सुस्वामि दोसु सब जनही ||

जग जस भाजन चातक मीना, नेम पेम निज निपुन नबीना ||

अस मन गुनत चले मग जाता, सकुच सनेहँ सिथिल सब गाता ||

फेरत मनहुँ मातु कृत खोरी, चलत भगति बल धीरज धोरी ||

जब समुझत रघुनाथ सुभाऊ, तब पथ परत उताइल पाऊ ||

भरत दसा तेहि अवसर कैसी, जल प्रबाहँ जल अलि गति जैसी ||

देखि भरत कर सोचु सनेहू, भा निषाद तेहि समयँ बिदेहू ||

 

दोहा

लगे होन मंगल सगुन सुनि गुनि कहत निषादु,

मिटिहि सोचु होइहि हरषु पुनि परिनाम बिषादु ||२३४ ||

 

चौपाई

सेवक बचन सत्य सब जाने, आश्रम निकट जाइ निअराने ||

भरत दीख बन सैल समाजू, मुदित छुधित जनु पाइ सुनाजू ||

ईति भीति जनु प्रजा दुखारी, त्रिबिध ताप पीड़ित ग्रह मारी ||

जाइ सुराज सुदेस सुखारी, होहिं भरत गति तेहि अनुहारी ||

राम बास बन संपति भ्राजा, सुखी प्रजा जनु पाइ सुराजा ||

सचिव बिरागु बिबेकु नरेसू, बिपिन सुहावन पावन देसू ||

भट जम नियम सैल रजधानी, सांति सुमति सुचि सुंदर रानी ||

सकल अंग संपन्न सुराऊ, राम चरन आश्रित चित चाऊ ||

 

दोहा

जीति मोह महिपालु दल सहित बिबेक भुआलु,

करत अकंटक राजु पुरँ सुख संपदा सुकालु ||२३५ ||

 

चौपाई

बन प्रदेस मुनि बास घनेरे, जनु पुर नगर गाउँ गन खेरे ||

बिपुल बिचित्र बिहग मृग नाना, प्रजा समाजु न जाइ बखाना ||

खगहा करि हरि बाघ बराहा, देखि महिष बृष साजु सराहा ||

बयरु बिहाइ चरहिं एक संगा, जहँ तहँ मनहुँ सेन चतुरंगा ||

झरना झरहिं मत्त गज गाजहिं, मनहुँ निसान बिबिधि बिधि बाजहिं ||

चक चकोर चातक सुक पिक गन, कूजत मंजु मराल मुदित मन ||

अलिगन गावत नाचत मोरा, जनु सुराज मंगल चहु ओरा ||

बेलि बिटप तृन सफल सफूला, सब समाजु मुद मंगल मूला ||

 

दोहा

राम सैल सोभा निरखि भरत हृदयँ अति पेमु,

तापस तप फलु पाइ जिमि सुखी सिरानें नेमु ||२३६ ||

 

मासपारायण, बीसवाँ विश्राम

नवाह्नपारायण, पाँचवाँ विश्राम

 

चौपाई

तब केवट ऊँचें चढ़ि धाई, कहेउ भरत सन भुजा उठाई ||

नाथ देखिअहिं बिटप बिसाला, पाकरि जंबु रसाल तमाला ||

जिन्ह तरुबरन्ह मध्य बटु सोहा, मंजु बिसाल देखि मनु मोहा ||

नील सघन पल्ल्व फल लाला, अबिरल छाहँ सुखद सब काला ||

मानहुँ तिमिर अरुनमय रासी, बिरची बिधि सँकेलि सुषमा सी ||

ए तरु सरित समीप गोसाँई, रघुबर परनकुटी जहँ छाई ||

तुलसी तरुबर बिबिध सुहाए, कहुँ कहुँ सियँ कहुँ लखन लगाए ||

बट छायाँ बेदिका बनाई, सियँ निज पानि सरोज सुहाई ||

 

दोहा

जहाँ बैठि मुनिगन सहित नित सिय रामु सुजान,

सुनहिं कथा इतिहास सब आगम निगम पुरान ||२३७ ||

 

चौपाई

सखा बचन सुनि बिटप निहारी, उमगे भरत बिलोचन बारी ||

करत प्रनाम चले दोउ भाई, कहत प्रीति सारद सकुचाई ||

हरषहिं निरखि राम पद अंका, मानहुँ पारसु पायउ रंका ||

रज सिर धरि हियँ नयनन्हि लावहिं, रघुबर मिलन सरिस सुख पावहिं ||

देखि भरत गति अकथ अतीवा, प्रेम मगन मृग खग जड़ जीवा ||

सखहि सनेह बिबस मग भूला, कहि सुपंथ सुर बरषहिं फूला ||

निरखि सिद्ध साधक अनुरागे, सहज सनेहु सराहन लागे ||

होत न भूतल भाउ भरत को, अचर सचर चर अचर करत को ||

 

दोहा

पेम अमिअ मंदरु बिरहु भरतु पयोधि गँभीर,

मथि प्रगटेउ सुर साधु हित कृपासिंधु रघुबीर ||२३८ ||

 

चौपाई

सखा समेत मनोहर जोटा, लखेउ न लखन सघन बन ओटा ||

भरत दीख प्रभु आश्रमु पावन, सकल सुमंगल सदनु सुहावन ||

करत प्रबेस मिटे दुख दावा, जनु जोगीं परमारथु पावा ||

देखे भरत लखन प्रभु आगे, पूँछे बचन कहत अनुरागे ||

सीस जटा कटि मुनि पट बाँधें, तून कसें कर सरु धनु काँधें ||

बेदी पर मुनि साधु समाजू, सीय सहित राजत रघुराजू ||

बलकल बसन जटिल तनु स्यामा, जनु मुनि बेष कीन्ह रति कामा ||

कर कमलनि धनु सायकु फेरत, जिय की जरनि हरत हँसि हेरत ||

 

दोहा

लसत मंजु मुनि मंडली मध्य सीय रघुचंदु,

ग्यान सभाँ जनु तनु धरे भगति सच्चिदानंदु ||२३९ ||

 

चौपाई

सानुज सखा समेत मगन मन, बिसरे हरष सोक सुख दुख गन ||

पाहि नाथ कहि पाहि गोसाई, भूतल परे लकुट की नाई ||

बचन सपेम लखन पहिचाने, करत प्रनामु भरत जियँ जाने ||

बंधु सनेह सरस एहि ओरा, उत साहिब सेवा बस जोरा ||

मिलि न जाइ नहिं गुदरत बनई, सुकबि लखन मन की गति भनई ||

रहे राखि सेवा पर भारू, चढ़ी चंग जनु खैंच खेलारू ||

कहत सप्रेम नाइ महि माथा, भरत प्रनाम करत रघुनाथा ||

उठे रामु सुनि पेम अधीरा, कहुँ पट कहुँ निषंग धनु तीरा ||

 

दोहा

बरबस लिए उठाइ उर लाए कृपानिधान,

भरत राम की मिलनि लखि बिसरे सबहि अपान ||२४० ||

 

चौपाई

मिलनि प्रीति किमि जाइ बखानी, कबिकुल अगम करम मन बानी ||

परम पेम पूरन दोउ भाई, मन बुधि चित अहमिति बिसराई ||

कहहु सुपेम प्रगट को करई, केहि छाया कबि मति अनुसरई ||

कबिहि अरथ आखर बलु साँचा, अनुहरि ताल गतिहि नटु नाचा ||

अगम सनेह भरत रघुबर को, जहँ न जाइ मनु बिधि हरि हर को ||

सो मैं कुमति कहौं केहि भाँती, बाज सुराग कि गाँडर ताँती ||

मिलनि बिलोकि भरत रघुबर की, सुरगन सभय धकधकी धरकी ||

समुझाए सुरगुरु जड़ जागे, बरषि प्रसून प्रसंसन लागे ||