दोहा

अबला बालक बृद्ध जन कर मीजहिं पछिताहिं ||

होहिं प्रेमबस लोग इमि रामु जहाँ जहँ जाहिं ||१२१ ||

 

चौपाई

गाँव गाँव अस होइ अनंदू, देखि भानुकुल कैरव चंदू ||

जे कछु समाचार सुनि पावहिं, ते नृप रानिहि दोसु लगावहिं ||

कहहिं एक अति भल नरनाहू, दीन्ह हमहि जोइ लोचन लाहू ||

कहहिं परस्पर लोग लोगाईं, बातें सरल सनेह सुहाईं ||

ते पितु मातु धन्य जिन्ह जाए, धन्य सो नगरु जहाँ तें आए ||

धन्य सो देसु सैलु बन गाऊँ, जहँ जहँ जाहिं धन्य सोइ ठाऊँ ||

सुख पायउ बिरंचि रचि तेही, ए जेहि के सब भाँति सनेही ||

राम लखन पथि कथा सुहाई, रही सकल मग कानन छाई ||

 

दोहा

एहि बिधि रघुकुल कमल रबि मग लोगन्ह सुख देत,

जाहिं चले देखत बिपिन सिय सौमित्रि समेत ||१२२ ||

 

चौपाई

आगे रामु लखनु बने पाछें, तापस बेष बिराजत काछें ||

उभय बीच सिय सोहति कैसे, ब्रह्म जीव बिच माया जैसे ||

बहुरि कहउँ छबि जसि मन बसई, जनु मधु मदन मध्य रति लसई ||

उपमा बहुरि कहउँ जियँ जोही, जनु बुध बिधु बिच रोहिनि सोही ||

प्रभु पद रेख बीच बिच सीता, धरति चरन मग चलति सभीता ||

सीय राम पद अंक बराएँ, लखन चलहिं मगु दाहिन लाएँ ||

राम लखन सिय प्रीति सुहाई, बचन अगोचर किमि कहि जाई ||

खग मृग मगन देखि छबि होहीं, लिए चोरि चित राम बटोहीं ||

 

दोहा

जिन्ह जिन्ह देखे पथिक प्रिय सिय समेत दोउ भाइ,

भव मगु अगमु अनंदु तेइ बिनु श्रम रहे सिराइ ||१२३ ||

 

चौपाई

अजहुँ जासु उर सपनेहुँ काऊ, बसहुँ लखनु सिय रामु बटाऊ ||

राम धाम पथ पाइहि सोई, जो पथ पाव कबहुँ मुनि कोई ||

तब रघुबीर श्रमित सिय जानी, देखि निकट बटु सीतल पानी ||

तहँ बसि कंद मूल फल खाई, प्रात नहाइ चले रघुराई ||

देखत बन सर सैल सुहाए, बालमीकि आश्रम प्रभु आए ||

राम दीख मुनि बासु सुहावन, सुंदर गिरि काननु जलु पावन ||

सरनि सरोज बिटप बन फूले, गुंजत मंजु मधुप रस भूले ||

खग मृग बिपुल कोलाहल करहीं, बिरहित बैर मुदित मन चरहीं ||

 

दोहा

सुचि सुंदर आश्रमु निरखि हरषे राजिवनेन,

सुनि रघुबर आगमनु मुनि आगें आयउ लेन ||१२४ ||

 

चौपाई

मुनि कहुँ राम दंडवत कीन्हा, आसिरबादु बिप्रबर दीन्हा ||

देखि राम छबि नयन जुड़ाने, करि सनमानु आश्रमहिं आने ||

मुनिबर अतिथि प्रानप्रिय पाए, कंद मूल फल मधुर मगाए ||

सिय सौमित्रि राम फल खाए, तब मुनि आश्रम दिए सुहाए ||

बालमीकि मन आनँदु भारी, मंगल मूरति नयन निहारी ||

तब कर कमल जोरि रघुराई, बोले बचन श्रवन सुखदाई ||

तुम्ह त्रिकाल दरसी मुनिनाथा, बिस्व बदर जिमि तुम्हरें हाथा ||

अस कहि प्रभु सब कथा बखानी, जेहि जेहि भाँति दीन्ह बनु रानी ||

 

दोहा

तात बचन पुनि मातु हित भाइ भरत अस राउ,

मो कहुँ दरस तुम्हार प्रभु सबु मम पुन्य प्रभाउ ||१२५ ||

 

चौपाई

देखि पाय मुनिराय तुम्हारे, भए सुकृत सब सुफल हमारे ||

अब जहँ राउर आयसु होई, मुनि उदबेगु न पावै कोई ||

मुनि तापस जिन्ह तें दुखु लहहीं, ते नरेस बिनु पावक दहहीं ||

मंगल मूल बिप्र परितोषू, दहइ कोटि कुल भूसुर रोषू ||

अस जियँ जानि कहिअ सोइ ठाऊँ, सिय सौमित्रि सहित जहँ जाऊँ ||

तहँ रचि रुचिर परन तृन साला, बासु करौ कछु काल कृपाला ||

सहज सरल सुनि रघुबर बानी, साधु साधु बोले मुनि ग्यानी ||

कस न कहहु अस रघुकुलकेतू, तुम्ह पालक संतत श्रुति सेतू ||

 

छंद

श्रुति सेतु पालक राम तुम्ह जगदीस माया जानकी,

जो सृजति जगु पालति हरति रूख पाइ कृपानिधान की ||

जो सहससीसु अहीसु महिधरु लखनु सचराचर धनी,

सुर काज धरि नरराज तनु चले दलन खल निसिचर अनी ||

 

सोरठा

राम सरुप तुम्हार बचन अगोचर बुद्धिपर,

अबिगत अकथ अपार नेति नित निगम कह ||१२६ ||

 

चौपाई

जगु पेखन तुम्ह देखनिहारे, बिधि हरि संभु नचावनिहारे ||

तेउ न जानहिं मरमु तुम्हारा, औरु तुम्हहि को जाननिहारा ||

सोइ जानइ जेहि देहु जनाई, जानत तुम्हहि तुम्हइ होइ जाई ||

तुम्हरिहि कृपाँ तुम्हहि रघुनंदन, जानहिं भगत भगत उर चंदन ||

चिदानंदमय देह तुम्हारी, बिगत बिकार जान अधिकारी ||

नर तनु धरेहु संत सुर काजा, कहहु करहु जस प्राकृत राजा ||

राम देखि सुनि चरित तुम्हारे, जड़ मोहहिं बुध होहिं सुखारे ||

तुम्ह जो कहहु करहु सबु साँचा, जस काछिअ तस चाहिअ नाचा ||

 

दोहा

पूँछेहु मोहि कि रहौं कहँ मैं पूँछत सकुचाउँ,

जहँ न होहु तहँ देहु कहि तुम्हहि देखावौं ठाउँ ||१२७ ||

 

चौपाई

सुनि मुनि बचन प्रेम रस साने, सकुचि राम मन महुँ मुसुकाने ||

बालमीकि हँसि कहहिं बहोरी, बानी मधुर अमिअ रस बोरी ||

सुनहु राम अब कहउँ निकेता, जहाँ बसहु सिय लखन समेता ||

जिन्ह के श्रवन समुद्र समाना, कथा तुम्हारि सुभग सरि नाना ||

भरहिं निरंतर होहिं न पूरे, तिन्ह के हिय तुम्ह कहुँ गृह रूरे ||

लोचन चातक जिन्ह करि राखे, रहहिं दरस जलधर अभिलाषे ||

निदरहिं सरित सिंधु सर भारी, रूप बिंदु जल होहिं सुखारी ||

तिन्ह के हृदय सदन सुखदायक, बसहु बंधु सिय सह रघुनायक ||

 

दोहा

जसु तुम्हार मानस बिमल हंसिनि जीहा जासु,

मुकुताहल गुन गन चुनइ राम बसहु हियँ तासु ||१२८ ||

 

चौपाई

प्रभु प्रसाद सुचि सुभग सुबासा, सादर जासु लहइ नित नासा ||

तुम्हहि निबेदित भोजन करहीं, प्रभु प्रसाद पट भूषन धरहीं ||

सीस नवहिं सुर गुरु द्विज देखी, प्रीति सहित करि बिनय बिसेषी ||

कर नित करहिं राम पद पूजा, राम भरोस हृदयँ नहि दूजा ||

चरन राम तीरथ चलि जाहीं, राम बसहु तिन्ह के मन माहीं ||

मंत्रराजु नित जपहिं तुम्हारा, पूजहिं तुम्हहि सहित परिवारा ||

तरपन होम करहिं बिधि नाना, बिप्र जेवाँइ देहिं बहु दाना ||

तुम्ह तें अधिक गुरहि जियँ जानी, सकल भायँ सेवहिं सनमानी ||

 

दोहा

सबु करि मागहिं एक फलु राम चरन रति होउ,

तिन्ह कें मन मंदिर बसहु सिय रघुनंदन दोउ ||१२९ ||

 

चौपाई

काम कोह मद मान न मोहा, लोभ न छोभ न राग न द्रोहा ||

जिन्ह कें कपट दंभ नहिं माया, तिन्ह कें हृदय बसहु रघुराया ||

सब के प्रिय सब के हितकारी, दुख सुख सरिस प्रसंसा गारी ||

कहहिं सत्य प्रिय बचन बिचारी, जागत सोवत सरन तुम्हारी ||

तुम्हहि छाड़ि गति दूसरि नाहीं, राम बसहु तिन्ह के मन माहीं ||

जननी सम जानहिं परनारी, धनु पराव बिष तें बिष भारी ||

जे हरषहिं पर संपति देखी, दुखित होहिं पर बिपति बिसेषी ||

जिन्हहि राम तुम्ह प्रानपिआरे, तिन्ह के मन सुभ सदन तुम्हारे ||

 

दोहा

स्वामि सखा पितु मातु गुर जिन्ह के सब तुम्ह तात,

मन मंदिर तिन्ह कें बसहु सीय सहित दोउ भ्रात ||१३० ||

 

चौपाई

अवगुन तजि सब के गुन गहहीं, बिप्र धेनु हित संकट सहहीं ||

नीति निपुन जिन्ह कइ जग लीका, घर तुम्हार तिन्ह कर मनु नीका ||

गुन तुम्हार समुझइ निज दोसा, जेहि सब भाँति तुम्हार भरोसा ||

राम भगत प्रिय लागहिं जेही, तेहि उर बसहु सहित बैदेही ||

जाति पाँति धनु धरम बड़ाई, प्रिय परिवार सदन सुखदाई ||

सब तजि तुम्हहि रहइ उर लाई, तेहि के हृदयँ रहहु रघुराई ||

सरगु नरकु अपबरगु समाना, जहँ तहँ देख धरें धनु बाना ||

करम बचन मन राउर चेरा, राम करहु तेहि कें उर डेरा ||

 

दोहा

जाहि न चाहिअ कबहुँ कछु तुम्ह सन सहज सनेहु,

बसहु निरंतर तासु मन सो राउर निज गेहु ||१३१ ||

 

चौपाई

एहि बिधि मुनिबर भवन देखाए, बचन सप्रेम राम मन भाए ||

कह मुनि सुनहु भानुकुलनायक, आश्रम कहउँ समय सुखदायक ||

चित्रकूट गिरि करहु निवासू, तहँ तुम्हार सब भाँति सुपासू ||

सैलु सुहावन कानन चारू, करि केहरि मृग बिहग बिहारू ||

नदी पुनीत पुरान बखानी, अत्रिप्रिया निज तपबल आनी ||

सुरसरि धार नाउँ मंदाकिनि, जो सब पातक पोतक डाकिनि ||

अत्रि आदि मुनिबर बहु बसहीं, करहिं जोग जप तप तन कसहीं ||

चलहु सफल श्रम सब कर करहू, राम देहु गौरव गिरिबरहू ||

 

दोहा

चित्रकूट महिमा अमित कहीं महामुनि गाइ,

आए नहाए सरित बर सिय समेत दोउ भाइ ||१३२ ||

 

चौपाई

रघुबर कहेउ लखन भल घाटू, करहु कतहुँ अब ठाहर ठाटू ||

लखन दीख पय उतर करारा, चहुँ दिसि फिरेउ धनुष जिमि नारा ||

नदी पनच सर सम दम दाना, सकल कलुष कलि साउज नाना ||

चित्रकूट जनु अचल अहेरी, चुकइ न घात मार मुठभेरी ||

अस कहि लखन ठाउँ देखरावा, थलु बिलोकि रघुबर सुखु पावा ||

रमेउ राम मनु देवन्ह जाना, चले सहित सुर थपति प्रधाना ||

कोल किरात बेष सब आए, रचे परन तृन सदन सुहाए ||

बरनि न जाहि मंजु दुइ साला, एक ललित लघु एक बिसाला ||

 

दोहा

लखन जानकी सहित प्रभु राजत रुचिर निकेत,

सोह मदनु मुनि बेष जनु रति रितुराज समेत ||१३३ ||

 

मासपारायण, सत्रहँवा विश्राम

 

चौपाई

अमर नाग किंनर दिसिपाला, चित्रकूट आए तेहि काला ||

राम प्रनामु कीन्ह सब काहू, मुदित देव लहि लोचन लाहू ||

बरषि सुमन कह देव समाजू, नाथ सनाथ भए हम आजू ||

करि बिनती दुख दुसह सुनाए, हरषित निज निज सदन सिधाए ||

चित्रकूट रघुनंदनु छाए, समाचार सुनि सुनि मुनि आए ||

आवत देखि मुदित मुनिबृंदा, कीन्ह दंडवत रघुकुल चंदा ||

मुनि रघुबरहि लाइ उर लेहीं, सुफल होन हित आसिष देहीं ||

सिय सौमित्र राम छबि देखहिं, साधन सकल सफल करि लेखहिं ||

 

दोहा

जथाजोग सनमानि प्रभु बिदा किए मुनिबृंद,

करहि जोग जप जाग तप निज आश्रमन्हि सुछंद ||१३४ ||

 

चौपाई

यह सुधि कोल किरातन्ह पाई, हरषे जनु नव निधि घर आई ||

कंद मूल फल भरि भरि दोना, चले रंक जनु लूटन सोना ||

तिन्ह महँ जिन्ह देखे दोउ भ्राता, अपर तिन्हहि पूँछहि मगु जाता ||

कहत सुनत रघुबीर निकाई, आइ सबन्हि देखे रघुराई ||

करहिं जोहारु भेंट धरि आगे, प्रभुहि बिलोकहिं अति अनुरागे ||

चित्र लिखे जनु जहँ तहँ ठाढ़े, पुलक सरीर नयन जल बाढ़े ||

राम सनेह मगन सब जाने, कहि प्रिय बचन सकल सनमाने ||

प्रभुहि जोहारि बहोरि बहोरी, बचन बिनीत कहहिं कर जोरी ||

 

दोहा

अब हम नाथ सनाथ सब भए देखि प्रभु पाय,

भाग हमारे आगमनु राउर कोसलराय ||१३५ ||

 

चौपाई

धन्य भूमि बन पंथ पहारा, जहँ जहँ नाथ पाउ तुम्ह धारा ||

धन्य बिहग मृग काननचारी, सफल जनम भए तुम्हहि निहारी ||

हम सब धन्य सहित परिवारा, दीख दरसु भरि नयन तुम्हारा ||

कीन्ह बासु भल ठाउँ बिचारी, इहाँ सकल रितु रहब सुखारी ||

हम सब भाँति करब सेवकाई, करि केहरि अहि बाघ बराई ||

बन बेहड़ गिरि कंदर खोहा, सब हमार प्रभु पग पग जोहा ||

तहँ तहँ तुम्हहि अहेर खेलाउब, सर निरझर जलठाउँ देखाउब ||

हम सेवक परिवार समेता, नाथ न सकुचब आयसु देता ||

 

दोहा

बेद बचन मुनि मन अगम ते प्रभु करुना ऐन,

बचन किरातन्ह के सुनत जिमि पितु बालक बैन ||१३६ ||

 

चौपाई

रामहि केवल प्रेमु पिआरा, जानि लेउ जो जाननिहारा ||

राम सकल बनचर तब तोषे, कहि मृदु बचन प्रेम परिपोषे ||

बिदा किए सिर नाइ सिधाए, प्रभु गुन कहत सुनत घर आए ||

एहि बिधि सिय समेत दोउ भाई, बसहिं बिपिन सुर मुनि सुखदाई ||

जब ते आइ रहे रघुनायकु, तब तें भयउ बनु मंगलदायकु ||

फूलहिं फलहिं बिटप बिधि नाना ||मंजु बलित बर बेलि बिताना ||

सुरतरु सरिस सुभायँ सुहाए, मनहुँ बिबुध बन परिहरि आए ||

गंज मंजुतर मधुकर श्रेनी, त्रिबिध बयारि बहइ सुख देनी ||

 

दोहा

नीलकंठ कलकंठ सुक चातक चक्क चकोर,

भाँति भाँति बोलहिं बिहग श्रवन सुखद चित चोर ||१३७ ||

 

चौपाई

केरि केहरि कपि कोल कुरंगा, बिगतबैर बिचरहिं सब संगा ||

फिरत अहेर राम छबि देखी, होहिं मुदित मृगबंद बिसेषी ||

बिबुध बिपिन जहँ लगि जग माहीं, देखि राम बनु सकल सिहाहीं ||

सुरसरि सरसइ दिनकर कन्या, मेकलसुता गोदावरि धन्या ||

सब सर सिंधु नदी नद नाना, मंदाकिनि कर करहिं बखाना ||

उदय अस्त गिरि अरु कैलासू, मंदर मेरु सकल सुरबासू ||

सैल हिमाचल आदिक जेते, चित्रकूट जसु गावहिं तेते ||

बिंधि मुदित मन सुखु न समाई, श्रम बिनु बिपुल बड़ाई पाई ||

 

दोहा

चित्रकूट के बिहग मृग बेलि बिटप तृन जाति,

पुन्य पुंज सब धन्य अस कहहिं देव दिन राति ||१३८ ||

 

चौपाई

नयनवंत रघुबरहि बिलोकी, पाइ जनम फल होहिं बिसोकी ||

परसि चरन रज अचर सुखारी, भए परम पद के अधिकारी ||

सो बनु सैलु सुभायँ सुहावन, मंगलमय अति पावन पावन ||

महिमा कहिअ कवनि बिधि तासू, सुखसागर जहँ कीन्ह निवासू ||

पय पयोधि तजि अवध बिहाई, जहँ सिय लखनु रामु रहे आई ||

कहि न सकहिं सुषमा जसि कानन, जौं सत सहस होंहिं सहसानन ||

सो मैं बरनि कहौं बिधि केहीं, डाबर कमठ कि मंदर लेहीं ||

सेवहिं लखनु करम मन बानी, जाइ न सीलु सनेहु बखानी ||

 

दोहा

छिनु छिनु लखि सिय राम पद जानि आपु पर नेहु,

करत न सपनेहुँ लखनु चितु बंधु मातु पितु गेहु ||१३९ ||

 

चौपाई

राम संग सिय रहति सुखारी, पुर परिजन गृह सुरति बिसारी ||

छिनु छिनु पिय बिधु बदनु निहारी, प्रमुदित मनहुँ चकोरकुमारी ||

नाह नेहु नित बढ़त बिलोकी, हरषित रहति दिवस जिमि कोकी ||

सिय मनु राम चरन अनुरागा, अवध सहस सम बनु प्रिय लागा ||

परनकुटी प्रिय प्रियतम संगा, प्रिय परिवारु कुरंग बिहंगा ||

सासु ससुर सम मुनितिय मुनिबर, असनु अमिअ सम कंद मूल फर ||

नाथ साथ साँथरी सुहाई, मयन सयन सय सम सुखदाई ||

लोकप होहिं बिलोकत जासू, तेहि कि मोहि सक बिषय बिलासू ||

 

दोहा

सुमिरत रामहि तजहिं जन तृन सम बिषय बिलासु,

रामप्रिया जग जननि सिय कछु न आचरजु तासु ||१४० ||

 

चौपाई

सीय लखन जेहि बिधि सुखु लहहीं, सोइ रघुनाथ करहि सोइ कहहीं ||

कहहिं पुरातन कथा कहानी, सुनहिं लखनु सिय अति सुखु मानी,

जब जब रामु अवध सुधि करहीं, तब तब बारि बिलोचन भरहीं ||

सुमिरि मातु पितु परिजन भाई, भरत सनेहु सीलु सेवकाई ||

कृपासिंधु प्रभु होहिं दुखारी, धीरजु धरहिं कुसमउ बिचारी ||

लखि सिय लखनु बिकल होइ जाहीं, जिमि पुरुषहि अनुसर परिछाहीं ||

प्रिया बंधु गति लखि रघुनंदनु, धीर कृपाल भगत उर चंदनु ||

लगे कहन कछु कथा पुनीता, सुनि सुखु लहहिं लखनु अरु सीता ||

 

दोहा

रामु लखन सीता सहित सोहत परन निकेत,

जिमि बासव बस अमरपुर सची जयंत समेत ||१४१ ||

 

चौपाई

जोगवहिं प्रभु सिय लखनहिं कैसें, पलक बिलोचन गोलक जैसें ||

सेवहिं लखनु सीय रघुबीरहि, जिमि अबिबेकी पुरुष सरीरहि ||

एहि बिधि प्रभु बन बसहिं सुखारी, खग मृग सुर तापस हितकारी ||

कहेउँ राम बन गवनु सुहावा, सुनहु सुमंत्र अवध जिमि आवा ||

फिरेउ निषादु प्रभुहि पहुँचाई, सचिव सहित रथ देखेसि आई ||

मंत्री बिकल बिलोकि निषादू, कहि न जाइ जस भयउ बिषादू ||

राम राम सिय लखन पुकारी, परेउ धरनितल ब्याकुल भारी ||

देखि दखिन दिसि हय हिहिनाहीं, जनु बिनु पंख बिहग अकुलाहीं ||

 

दोहा

नहिं तृन चरहिं पिअहिं जलु मोचहिं लोचन बारि,

ब्याकुल भए निषाद सब रघुबर बाजि निहारि ||१४२ ||

 

चौपाई

धरि धीरज तब कहइ निषादू, अब सुमंत्र परिहरहु बिषादू ||

तुम्ह पंडित परमारथ ग्याता, धरहु धीर लखि बिमुख बिधाता

बिबिध कथा कहि कहि मृदु बानी, रथ बैठारेउ बरबस आनी ||

सोक सिथिल रथ सकइ न हाँकी, रघुबर बिरह पीर उर बाँकी ||

चरफराहिँ मग चलहिं न घोरे, बन मृग मनहुँ आनि रथ जोरे ||

अढ़ुकि परहिं फिरि हेरहिं पीछें, राम बियोगि बिकल दुख तीछें ||

जो कह रामु लखनु बैदेही, हिंकरि हिंकरि हित हेरहिं तेही ||

बाजि बिरह गति कहि किमि जाती, बिनु मनि फनिक बिकल जेहि भाँती ||

 

दोहा

भयउ निषाद बिषादबस देखत सचिव तुरंग,

बोलि सुसेवक चारि तब दिए सारथी संग ||१४३ ||

 

चौपाई

गुह सारथिहि फिरेउ पहुँचाई, बिरहु बिषादु बरनि नहिं जाई ||

चले अवध लेइ रथहि निषादा, होहि छनहिं छन मगन बिषादा ||

सोच सुमंत्र बिकल दुख दीना, धिग जीवन रघुबीर बिहीना ||

रहिहि न अंतहुँ अधम सरीरू, जसु न लहेउ बिछुरत रघुबीरू ||

भए अजस अघ भाजन प्राना, कवन हेतु नहिं करत पयाना ||

अहह मंद मनु अवसर चूका, अजहुँ न हृदय होत दुइ टूका ||

मीजि हाथ सिरु धुनि पछिताई, मनहँ कृपन धन रासि गवाँई ||

बिरिद बाँधि बर बीरु कहाई, चलेउ समर जनु सुभट पराई ||

 

दोहा

बिप्र बिबेकी बेदबिद संमत साधु सुजाति,

जिमि धोखें मदपान कर सचिव सोच तेहि भाँति ||१४४ ||

 

चौपाई

जिमि कुलीन तिय साधु सयानी, पतिदेवता करम मन बानी ||

रहै करम बस परिहरि नाहू, सचिव हृदयँ तिमि दारुन दाहु ||

लोचन सजल डीठि भइ थोरी, सुनइ न श्रवन बिकल मति भोरी ||

सूखहिं अधर लागि मुहँ लाटी, जिउ न जाइ उर अवधि कपाटी ||

बिबरन भयउ न जाइ निहारी, मारेसि मनहुँ पिता महतारी ||

हानि गलानि बिपुल मन ब्यापी, जमपुर पंथ सोच जिमि पापी ||

बचनु न आव हृदयँ पछिताई, अवध काह मैं देखब जाई ||

राम रहित रथ देखिहि जोई, सकुचिहि मोहि बिलोकत सोई ||

 

दोहा

धाइ पूँछिहहिं मोहि जब बिकल नगर नर नारि,

उतरु देब मैं सबहि तब हृदयँ बज्रु बैठारि ||१४५ ||

 

चौपाई

पुछिहहिं दीन दुखित सब माता, कहब काह मैं तिन्हहि बिधाता ||

पूछिहि जबहिं लखन महतारी, कहिहउँ कवन सँदेस सुखारी ||

राम जननि जब आइहि धाई, सुमिरि बच्छु जिमि धेनु लवाई ||

पूँछत उतरु देब मैं तेही, गे बनु राम लखनु बैदेही ||

जोइ पूँछिहि तेहि ऊतरु देबा.जाइ अवध अब यहु सुखु लेबा ||

पूँछिहि जबहिं राउ दुख दीना, जिवनु जासु रघुनाथ अधीना ||

देहउँ उतरु कौनु मुहु लाई, आयउँ कुसल कुअँर पहुँचाई ||

सुनत लखन सिय राम सँदेसू, तृन जिमि तनु परिहरिहि नरेसू ||

 

दोहा

ह्रदउ न बिदरेउ पंक जिमि बिछुरत प्रीतमु नीरु ||

जानत हौं मोहि दीन्ह बिधि यहु जातना सरीरु ||१४६ ||

 

चौपाई

एहि बिधि करत पंथ पछितावा, तमसा तीर तुरत रथु आवा ||

बिदा किए करि बिनय निषादा, फिरे पायँ परि बिकल बिषादा ||

पैठत नगर सचिव सकुचाई, जनु मारेसि गुर बाँभन गाई ||

बैठि बिटप तर दिवसु गवाँवा, साँझ समय तब अवसरु पावा ||

अवध प्रबेसु कीन्ह अँधिआरें, पैठ भवन रथु राखि दुआरें ||

जिन्ह जिन्ह समाचार सुनि पाए, भूप द्वार रथु देखन आए ||

रथु पहिचानि बिकल लखि घोरे, गरहिं गात जिमि आतप ओरे ||

नगर नारि नर ब्याकुल कैंसें, निघटत नीर मीनगन जैंसें ||

 

दोहा

सचिव आगमनु सुनत सबु बिकल भयउ रनिवासु,

भवन भयंकरु लाग तेहि मानहुँ प्रेत निवासु ||१४७ ||

 

चौपाई

अति आरति सब पूँछहिं रानी, उतरु न आव बिकल भइ बानी ||

सुनइ न श्रवन नयन नहिं सूझा, कहहु कहाँ नृप तेहि तेहि बूझा ||

दासिन्ह दीख सचिव बिकलाई, कौसल्या गृहँ गईं लवाई ||

जाइ सुमंत्र दीख कस राजा, अमिअ रहित जनु चंदु बिराजा ||

आसन सयन बिभूषन हीना, परेउ भूमितल निपट मलीना ||

लेइ उसासु सोच एहि भाँती, सुरपुर तें जनु खँसेउ जजाती ||

लेत सोच भरि छिनु छिनु छाती, जनु जरि पंख परेउ संपाती ||

राम राम कह राम सनेही, पुनि कह राम लखन बैदेही ||

 

दोहा

देखि सचिवँ जय जीव कहि कीन्हेउ दंड प्रनामु,

सुनत उठेउ ब्याकुल नृपति कहु सुमंत्र कहँ रामु ||१४८ ||

 

चौपाई

भूप सुमंत्रु लीन्ह उर लाई, बूड़त कछु अधार जनु पाई ||

सहित सनेह निकट बैठारी, पूँछत राउ नयन भरि बारी ||

राम कुसल कहु सखा सनेही, कहँ रघुनाथु लखनु बैदेही ||

आने फेरि कि बनहि सिधाए, सुनत सचिव लोचन जल छाए ||

सोक बिकल पुनि पूँछ नरेसू, कहु सिय राम लखन संदेसू ||

राम रूप गुन सील सुभाऊ, सुमिरि सुमिरि उर सोचत राऊ ||

राउ सुनाइ दीन्ह बनबासू, सुनि मन भयउ न हरषु हराँसू ||

सो सुत बिछुरत गए न प्राना, को पापी बड़ मोहि समाना ||

 

दोहा

सखा रामु सिय लखनु जहँ तहाँ मोहि पहुँचाउ,

नाहिं त चाहत चलन अब प्रान कहउँ सतिभाउ ||१४९ ||

 

चौपाई

पुनि पुनि पूँछत मंत्रहि राऊ, प्रियतम सुअन सँदेस सुनाऊ ||

करहि सखा सोइ बेगि उपाऊ, रामु लखनु सिय नयन देखाऊ ||

सचिव धीर धरि कह मुदु बानी, महाराज तुम्ह पंडित ग्यानी ||

बीर सुधीर धुरंधर देवा, साधु समाजु सदा तुम्ह सेवा ||

जनम मरन सब दुख भोगा, हानि लाभ प्रिय मिलन बियोगा ||

काल करम बस हौहिं गोसाईं, बरबस राति दिवस की नाईं ||

सुख हरषहिं जड़ दुख बिलखाहीं, दोउ सम धीर धरहिं मन माहीं ||

धीरज धरहु बिबेकु बिचारी, छाड़िअ सोच सकल हितकारी ||

 

दोहा

प्रथम बासु तमसा भयउ दूसर सुरसरि तीर,

न्हाई रहे जलपानु करि सिय समेत दोउ बीर ||१५० ||

 

चौपाई

केवट कीन्हि बहुत सेवकाई, सो जामिनि सिंगरौर गवाँई ||

होत प्रात बट छीरु मगावा, जटा मुकुट निज सीस बनावा ||

राम सखाँ तब नाव मगाई, प्रिया चढ़ाइ चढ़े रघुराई ||

लखन बान धनु धरे बनाई, आपु चढ़े प्रभु आयसु पाई ||

बिकल बिलोकि मोहि रघुबीरा, बोले मधुर बचन धरि धीरा ||

तात प्रनामु तात सन कहेहु, बार बार पद पंकज गहेहू ||

करबि पायँ परि बिनय बहोरी, तात करिअ जनि चिंता मोरी ||

बन मग मंगल कुसल हमारें, कृपा अनुग्रह पुन्य तुम्हारें ||

 

छंद

तुम्हरे अनुग्रह तात कानन जात सब सुखु पाइहौं,

प्रतिपालि आयसु कुसल देखन पाय पुनि फिरि आइहौं ||

जननीं सकल परितोषि परि परि पायँ करि बिनती घनी,

तुलसी करेहु सोइ जतनु जेहिं कुसली रहहिं कोसल धनी ||

 

सोरठा

गुर सन कहब सँदेसु बार बार पद पदुम गहि,

करब सोइ उपदेसु जेहिं न सोच मोहि अवधपति ||१५१ ||

 

चौपाई

पुरजन परिजन सकल निहोरी, तात सुनाएहु बिनती मोरी ||

सोइ सब भाँति मोर हितकारी, जातें रह नरनाहु सुखारी ||

कहब सँदेसु भरत के आएँ, नीति न तजिअ राजपदु पाएँ ||

पालेहु प्रजहि करम मन बानी, सेएहु मातु सकल सम जानी ||

ओर निबाहेहु भायप भाई, करि पितु मातु सुजन सेवकाई ||

तात भाँति तेहि राखब राऊ, सोच मोर जेहिं करै न काऊ ||

लखन कहे कछु बचन कठोरा, बरजि राम पुनि मोहि निहोरा ||

बार बार निज सपथ देवाई, कहबि न तात लखन लरिकाई ||

 

दोहा

कहि प्रनाम कछु कहन लिय सिय भइ सिथिल सनेह,

थकित बचन लोचन सजल पुलक पल्लवित देह ||१५२ ||

 

चौपाई

तेहि अवसर रघुबर रूख पाई, केवट पारहि नाव चलाई ||

रघुकुलतिलक चले एहि भाँती, देखउँ ठाढ़ कुलिस धरि छाती ||

मैं आपन किमि कहौं कलेसू, जिअत फिरेउँ लेइ राम सँदेसू ||

अस कहि सचिव बचन रहि गयऊ, हानि गलानि सोच बस भयऊ ||

सुत बचन सुनतहिं नरनाहू, परेउ धरनि उर दारुन दाहू ||

तलफत बिषम मोह मन मापा, माजा मनहुँ मीन कहुँ ब्यापा ||

करि बिलाप सब रोवहिं रानी, महा बिपति किमि जाइ बखानी ||

सुनि बिलाप दुखहू दुखु लागा, धीरजहू कर धीरजु भागा ||

 

दोहा

भयउ कोलाहलु अवध अति सुनि नृप राउर सोरु,

बिपुल बिहग बन परेउ निसि मानहुँ कुलिस कठोरु ||१५३ ||

 

चौपाई

प्रान कंठगत भयउ भुआलू, मनि बिहीन जनु ब्याकुल ब्यालू ||

इद्रीं सकल बिकल भइँ भारी, जनु सर सरसिज बनु बिनु बारी ||

कौसल्याँ नृपु दीख मलाना, रबिकुल रबि अँथयउ जियँ जाना,

उर धरि धीर राम महतारी, बोली बचन समय अनुसारी ||

नाथ समुझि मन करिअ बिचारू, राम बियोग पयोधि अपारू ||

करनधार तुम्ह अवध जहाजू, चढ़ेउ सकल प्रिय पथिक समाजू ||

धीरजु धरिअ त पाइअ पारू, नाहिं त बूड़िहि सबु परिवारू ||

जौं जियँ धरिअ बिनय पिय मोरी, रामु लखनु सिय मिलहिं बहोरी ||

 

दोहा

प्रिया बचन मृदु सुनत नृपु चितयउ आँखि उघारि,

तलफत मीन मलीन जनु सींचत सीतल बारि ||१५४ ||

 

चौपाई

धरि धीरजु उठी बैठ भुआलू, कहु सुमंत्र कहँ राम कृपालू ||

कहाँ लखनु कहँ रामु सनेही, कहँ प्रिय पुत्रबधू बैदेही ||

बिलपत राउ बिकल बहु भाँती, भइ जुग सरिस सिराति न राती ||

तापस अंध साप सुधि आई, कौसल्यहि सब कथा सुनाई ||

भयउ बिकल बरनत इतिहासा, राम रहित धिग जीवन आसा ||

सो तनु राखि करब मैं काहा, जेंहि न प्रेम पनु मोर निबाहा ||

हा रघुनंदन प्रान पिरीते, तुम्ह बिनु जिअत बहुत दिन बीते ||

हा जानकी लखन हा रघुबर, हा पितु हित चित चातक जलधर,

 

दोहा

राम राम कहि राम कहि राम राम कहि राम,

तनु परिहरि रघुबर बिरहँ राउ गयउ सुरधाम ||१५५ ||

 

चौपाई

जिअन मरन फलु दसरथ पावा, अंड अनेक अमल जसु छावा ||

जिअत राम बिधु बदनु निहारा, राम बिरह करि मरनु सँवारा ||

सोक बिकल सब रोवहिं रानी, रूपु सील बलु तेजु बखानी ||

करहिं बिलाप अनेक प्रकारा, परहीं भूमितल बारहिं बारा ||

बिलपहिं बिकल दास अरु दासी, घर घर रुदनु करहिं पुरबासी ||

अँथयउ आजु भानुकुल भानू, धरम अवधि गुन रूप निधानू ||

गारीं सकल कैकइहि देहीं, नयन बिहीन कीन्ह जग जेहीं ||

एहि बिधि बिलपत रैनि बिहानी, आए सकल महामुनि ग्यानी ||

 

दोहा

तब बसिष्ठ मुनि समय सम कहि अनेक इतिहास,

सोक नेवारेउ सबहि कर निज बिग्यान प्रकास ||१५६ ||

 

चौपाई

तेल नाँव भरि नृप तनु राखा, दूत बोलाइ बहुरि अस भाषा ||

धावहु बेगि भरत पहिं जाहू, नृप सुधि कतहुँ कहहु जनि काहू ||

एतनेइ कहेहु भरत सन जाई, गुर बोलाई पठयउ दोउ भाई ||

सुनि मुनि आयसु धावन धाए, चले बेग बर बाजि लजाए ||

अनरथु अवध अरंभेउ जब तें, कुसगुन होहिं भरत कहुँ तब तें ||

देखहिं राति भयानक सपना, जागि करहिं कटु कोटि कलपना ||

बिप्र जेवाँइ देहिं दिन दाना, सिव अभिषेक करहिं बिधि नाना ||

मागहिं हृदयँ महेस मनाई, कुसल मातु पितु परिजन भाई ||

 

दोहा

एहि बिधि सोचत भरत मन धावन पहुँचे आइ,

गुर अनुसासन श्रवन सुनि चले गनेसु मनाइ ||१५७ ||

 

चौपाई

चले समीर बेग हय हाँके, नाघत सरित सैल बन बाँके ||

हृदयँ सोचु बड़ कछु न सोहाई, अस जानहिं जियँ जाउँ उड़ाई ||

एक निमेष बरस सम जाई, एहि बिधि भरत नगर निअराई ||

असगुन होहिं नगर पैठारा, रटहिं कुभाँति कुखेत करारा ||

खर सिआर बोलहिं प्रतिकूला, सुनि सुनि होइ भरत मन सूला ||

श्रीहत सर सरिता बन बागा, नगरु बिसेषि भयावनु लागा ||

खग मृग हय गय जाहिं न जोए, राम बियोग कुरोग बिगोए ||

नगर नारि नर निपट दुखारी, मनहुँ सबन्हि सब संपति हारी ||

 

दोहा

पुरजन मिलिहिं न कहहिं कछु गवँहिं जोहारहिं जाहिं,

भरत कुसल पूँछि न सकहिं भय बिषाद मन माहिं ||१५८ ||

 

चौपाई

हाट बाट नहिं जाइ निहारी, जनु पुर दहँ दिसि लागि दवारी ||

आवत सुत सुनि कैकयनंदिनि, हरषी रबिकुल जलरुह चंदिनि ||

सजि आरती मुदित उठि धाई, द्वारेहिं भेंटि भवन लेइ आई ||

भरत दुखित परिवारु निहारा, मानहुँ तुहिन बनज बनु मारा ||

कैकेई हरषित एहि भाँति, मनहुँ मुदित दव लाइ किराती ||

सुतहि ससोच देखि मनु मारें, पूँछति नैहर कुसल हमारें ||

सकल कुसल कहि भरत सुनाई, पूँछी निज कुल कुसल भलाई ||

कहु कहँ तात कहाँ सब माता, कहँ सिय राम लखन प्रिय भ्राता ||

 

दोहा

सुनि सुत बचन सनेहमय कपट नीर भरि नैन,

भरत श्रवन मन सूल सम पापिनि बोली बैन ||१५९ ||

 

चौपाई

तात बात मैं सकल सँवारी, भै मंथरा सहाय बिचारी ||

कछुक काज बिधि बीच बिगारेउ, भूपति सुरपति पुर पगु धारेउ ||

सुनत भरतु भए बिबस बिषादा, जनु सहमेउ करि केहरि नादा ||

तात तात हा तात पुकारी, परे भूमितल ब्याकुल भारी ||

चलत न देखन पायउँ तोही, तात न रामहि सौंपेहु मोही ||

बहुरि धीर धरि उठे सँभारी, कहु पितु मरन हेतु महतारी ||

सुनि सुत बचन कहति कैकेई, मरमु पाँछि जनु माहुर देई ||

आदिहु तें सब आपनि करनी, कुटिल कठोर मुदित मन बरनी ||

 

दोहा

भरतहि बिसरेउ पितु मरन सुनत राम बन गौनु,

हेतु अपनपउ जानि जियँ थकित रहे धरि मौनु ||१६० ||

 

चौपाई

बिकल बिलोकि सुतहि समुझावति, मनहुँ जरे पर लोनु लगावति ||

तात राउ नहिं सोचे जोगू, बिढ़इ सुकृत जसु कीन्हेउ भोगू ||

जीवत सकल जनम फल पाए, अंत अमरपति सदन सिधाए ||

अस अनुमानि सोच परिहरहू, सहित समाज राज पुर करहू ||

सुनि सुठि सहमेउ राजकुमारू, पाकें छत जनु लाग अँगारू ||

धीरज धरि भरि लेहिं उसासा, पापनि सबहि भाँति कुल नासा ||

जौं पै कुरुचि रही अति तोही, जनमत काहे न मारे मोही ||

पेड़ काटि तैं पालउ सींचा, मीन जिअन निति बारि उलीचा ||