अयोध्याकाण्ड

|| श्री गणेशाय नमः ||

श्री रामचरित मानस द्वितीय सोपान - अयोध्या-काण्ड

 

श्लोक

यस्याङ्के च विभाति भूधरसुता देवापगा मस्तके

भाले बालविधुर्गले च गरलं यस्योरसि व्यालराट,

सोऽयं भूतिविभूषणः सुरवरः सर्वाधिपः सर्वदा शर्वः

सर्वगतः शिवः शशिनिभः श्रीशङ्करः पातु माम ||१ ||

प्रसन्नतां या न गताभिषेकतस्तथा न मम्ले वनवासदुःखतः,

मुखाम्बुजश्री रघुनन्दनस्य मे सदास्तु सा मञ्जुलमंगलप्रदा ||२ ||

नीलाम्बुजश्यामलकोमलाङ्गं सीतासमारोपितवामभागम,

पाणौ महासायकचारुचापं नमामि रामं रघुवंशनाथम ||३ ||

 

दोहा

श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि,

बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ||

 

चौपाई

जब तें रामु ब्याहि घर आए, नित नव मंगल मोद बधाए ||

भुवन चारिदस भूधर भारी, सुकृत मेघ बरषहि सुख बारी ||१||

रिधि सिधि संपति नदीं सुहाई, उमगि अवध अंबुधि कहुँ आई ||

मनिगन पुर नर नारि सुजाती, सुचि अमोल सुंदर सब भाँती ||२||

कहि न जाइ कछु नगर बिभूती, जनु एतनिअ बिरंचि करतूती ||

सब बिधि सब पुर लोग सुखारी, रामचंद मुख चंदु निहारी ||३||

मुदित मातु सब सखीं सहेली, फलित बिलोकि मनोरथ बेली ||

राम रूपु गुनसीलु सुभाऊ, प्रमुदित होइ देखि सुनि राऊ ||४||

 

दोहा

सब कें उर अभिलाषु अस कहहिं मनाइ महेसु,

आप अछत जुबराज पद रामहि देउ नरेसु ||१ ||

 

चौपाई

एक समय सब सहित समाजा, राजसभाँ रघुराजु बिराजा ||

सकल सुकृत मूरति नरनाहू, राम सुजसु सुनि अतिहि उछाहू ||१||

नृप सब रहहिं कृपा अभिलाषें, लोकप करहिं प्रीति रुख राखें ||

तिभुवन तीनि काल जग माहीं, भूरि भाग दसरथ सम नाहीं ||२||

मंगलमूल रामु सुत जासू, जो कछु कहिज थोर सबु तासू ||

रायँ सुभायँ मुकुरु कर लीन्हा, बदनु बिलोकि मुकुट सम कीन्हा ||३||

श्रवन समीप भए सित केसा, मनहुँ जरठपनु अस उपदेसा ||

नृप जुबराज राम कहुँ देहू, जीवन जनम लाहु किन लेहू ||४||

 

दोहा

यह बिचारु उर आनि नृप सुदिनु सुअवसरु पाइ,

प्रेम पुलकि तन मुदित मन गुरहि सुनायउ जाइ ||२ ||

 

चौपाई

कहइ भुआलु सुनिअ मुनिनायक, भए राम सब बिधि सब लायक ||

सेवक सचिव सकल पुरबासी, जे हमारे अरि मित्र उदासी ||१||

सबहि रामु प्रिय जेहि बिधि मोही, प्रभु असीस जनु तनु धरि सोही ||

बिप्र सहित परिवार गोसाईं, करहिं छोहु सब रौरिहि नाई ||२||

जे गुर चरन रेनु सिर धरहीं, ते जनु सकल बिभव बस करहीं ||

मोहि सम यहु अनुभयउ न दूजें, सबु पायउँ रज पावनि पूजें ||३||

अब अभिलाषु एकु मन मोरें, पूजहि नाथ अनुग्रह तोरें ||

मुनि प्रसन्न लखि सहज सनेहू, कहेउ नरेस रजायसु देहू ||४||

 

दोहा

राजन राउर नामु जसु सब अभिमत दातार,

फल अनुगामी महिप मनि मन अभिलाषु तुम्हार ||३ ||

 

चौपाई

सब बिधि गुरु प्रसन्न जियँ जानी, बोलेउ राउ रहँसि मृदु बानी ||

नाथ रामु करिअहिं जुबराजू, कहिअ कृपा करि करिअ समाजू ||१||

मोहि अछत यहु होइ उछाहू, लहहिं लोग सब लोचन लाहू ||

प्रभु प्रसाद सिव सबइ निबाहीं, यह लालसा एक मन माहीं ||२||

पुनि न सोच तनु रहउ कि जाऊ, जेहिं न होइ पाछें पछिताऊ ||

सुनि मुनि दसरथ बचन सुहाए, मंगल मोद मूल मन भाए ||३||

सुनु नृप जासु बिमुख पछिताहीं, जासु भजन बिनु जरनि न जाहीं ||

भयउ तुम्हार तनय सोइ स्वामी, रामु पुनीत प्रेम अनुगामी ||४||

 

दोहा

बेगि बिलंबु न करिअ नृप साजिअ सबुइ समाजु,

सुदिन सुमंगलु तबहिं जब रामु होहिं जुबराजु ||४ ||

 

चौपाई

चौ॰-मुदित महिपति मंदिर आए, सेवक सचिव सुमंत्रु बोलाए ||

कहि जयजीव सीस तिन्ह नाए, भूप सुमंगल बचन सुनाए ||१||

जौं पाँचहि मत लागै नीका, करहु हरषि हियँ रामहि टीका ||

मंत्री मुदित सुनत प्रिय बानी, अभिमत बिरवँ परेउ जनु पानी ||२||

बिनती सचिव करहि कर जोरी, जिअहु जगतपति बरिस करोरी ||

जग मंगल भल काजु बिचारा, बेगिअ नाथ न लाइअ बारा ||३||

नृपहि मोदु सुनि सचिव सुभाषा, बढ़त बौंड़ जनु लही सुसाखा ||४||

 

दोहा

कहेउ भूप मुनिराज कर जोइ जोइ आयसु होइ,

राम राज अभिषेक हित बेगि करहु सोइ सोइ ||५ ||

 

चौपाई

हरषि मुनीस कहेउ मृदु बानी, आनहु सकल सुतीरथ पानी ||

औषध मूल फूल फल पाना, कहे नाम गनि मंगल नाना ||१||

चामर चरम बसन बहु भाँती, रोम पाट पट अगनित जाती ||

मनिगन मंगल बस्तु अनेका, जो जग जोगु भूप अभिषेका ||२||

बेद बिदित कहि सकल बिधाना, कहेउ रचहु पुर बिबिध बिताना ||

सफल रसाल पूगफल केरा, रोपहु बीथिन्ह पुर चहुँ फेरा ||३||

रचहु मंजु मनि चौकें चारू, कहहु बनावन बेगि बजारू ||

पूजहु गनपति गुर कुलदेवा, सब बिधि करहु भूमिसुर सेवा ||४||

 

दोहा

ध्वज पताक तोरन कलस सजहु तुरग रथ नाग,

सिर धरि मुनिबर बचन सबु निज निज काजहिं लाग ||६ ||

 

चौपाई

जो मुनीस जेहि आयसु दीन्हा, सो तेहिं काजु प्रथम जनु कीन्हा ||

बिप्र साधु सुर पूजत राजा, करत राम हित मंगल काजा ||१||

सुनत राम अभिषेक सुहावा, बाज गहागह अवध बधावा ||

राम सीय तन सगुन जनाए, फरकहिं मंगल अंग सुहाए ||२||

पुलकि सप्रेम परसपर कहहीं, भरत आगमनु सूचक अहहीं ||

भए बहुत दिन अति अवसेरी, सगुन प्रतीति भेंट प्रिय केरी ||३||

भरत सरिस प्रिय को जग माहीं, इहइ सगुन फलु दूसर नाहीं ||

रामहि बंधु सोच दिन राती, अंडन्हि कमठ ह्रदउ जेहि भाँती ||४||

 

दोहा

एहि अवसर मंगलु परम सुनि रहँसेउ रनिवासु,

सोभत लखि बिधु बढ़त जनु बारिधि बीचि बिलासु ||७ ||

 

चौपाई

प्रथम जाइ जिन्ह बचन सुनाए, भूषन बसन भूरि तिन्ह पाए ||

प्रेम पुलकि तन मन अनुरागीं, मंगल कलस सजन सब लागीं ||१||

चौकें चारु सुमित्राँ पुरी, मनिमय बिबिध भाँति अति रुरी ||

आनँद मगन राम महतारी, दिए दान बहु बिप्र हँकारी ||२||

पूजीं ग्रामदेबि सुर नागा, कहेउ बहोरि देन बलिभागा ||

जेहि बिधि होइ राम कल्यानू, देहु दया करि सो बरदानू ||३||

गावहिं मंगल कोकिलबयनीं, बिधुबदनीं मृगसावकनयनीं ||४||

 

दोहा

राम राज अभिषेकु सुनि हियँ हरषे नर नारि,

लगे सुमंगल सजन सब बिधि अनुकूल बिचारि ||८ ||

 

चौपाई

तब नरनाहँ बसिष्ठु बोलाए, रामधाम सिख देन पठाए ||

गुर आगमनु सुनत रघुनाथा, द्वार आइ पद नायउ माथा ||१||

सादर अरघ देइ घर आने, सोरह भाँति पूजि सनमाने ||

गहे चरन सिय सहित बहोरी, बोले रामु कमल कर जोरी ||२||

सेवक सदन स्वामि आगमनू, मंगल मूल अमंगल दमनू ||

तदपि उचित जनु बोलि सप्रीती, पठइअ काज नाथ असि नीती ||३||

प्रभुता तजि प्रभु कीन्ह सनेहू, भयउ पुनीत आजु यहु गेहू ||

आयसु होइ सो करौं गोसाई, सेवक लहइ स्वामि सेवकाई ||४||

 

दोहा

सुनि सनेह साने बचन मुनि रघुबरहि प्रसंस,

राम कस न तुम्ह कहहु अस हंस बंस अवतंस ||९ ||

 

चौपाई

बरनि राम गुन सीलु सुभाऊ, बोले प्रेम पुलकि मुनिराऊ ||

भूप सजेउ अभिषेक समाजू, चाहत देन तुम्हहि जुबराजू ||१||

राम करहु सब संजम आजू, जौं बिधि कुसल निबाहै काजू ||

गुरु सिख देइ राय पहिं गयउ, राम हृदयँ अस बिसमउ भयऊ ||२||

जनमे एक संग सब भाई, भोजन सयन केलि लरिकाई ||

करनबेध उपबीत बिआहा, संग संग सब भए उछाहा ||३||

बिमल बंस यहु अनुचित एकू, बंधु बिहाइ बड़ेहि अभिषेकू ||

प्रभु सप्रेम पछितानि सुहाई, हरउ भगत मन कै कुटिलाई ||४||

 

दोहा

तेहि अवसर आए लखन मगन प्रेम आनंद,

सनमाने प्रिय बचन कहि रघुकुल कैरव चंद ||१० ||

 

चौपाई

बाजहिं बाजने बिबिध बिधाना, पुर प्रमोदु नहिं जाइ बखाना ||

भरत आगमनु सकल मनावहिं, आवहुँ बेगि नयन फलु पावहिं ||१||

हाट बाट घर गलीं अथाई, कहहिं परसपर लोग लोगाई ||

कालि लगन भलि केतिक बारा, पूजिहि बिधि अभिलाषु हमारा ||२||

कनक सिंघासन सीय समेता, बैठहिं रामु होइ चित चेता ||

सकल कहहिं कब होइहि काली, बिघन मनावहिं देव कुचाली ||३||

तिन्हहि सोहाइ न अवध बधावा, चोरहि चंदिनि राति न भावा ||

सारद बोलि बिनय सुर करहीं, बारहिं बार पाय लै परहीं ||४||

 

दोहा

बिपति हमारि बिलोकि बड़ि मातु करिअ सोइ आजु,

रामु जाहिं बन राजु तजि होइ सकल सुरकाजु ||११ ||

 

चौपाई

सुनि सुर बिनय ठाढ़ि पछिताती, भइउँ सरोज बिपिन हिमराती ||

देखि देव पुनि कहहिं निहोरी, मातु तोहि नहिं थोरिउ खोरी ||१||

बिसमय हरष रहित रघुराऊ, तुम्ह जानहु सब राम प्रभाऊ ||

जीव करम बस सुख दुख भागी, जाइअ अवध देव हित लागी ||२||

बार बार गहि चरन सँकोचौ, चली बिचारि बिबुध मति पोची ||

ऊँच निवासु नीचि करतूती, देखि न सकहिं पराइ बिभूती ||३||

आगिल काजु बिचारि बहोरी, करहहिं चाह कुसल कबि मोरी ||

हरषि हृदयँ दसरथ पुर आई, जनु ग्रह दसा दुसह दुखदाई ||४||

 

दोहा

नामु मंथरा मंदमति चेरी कैकेइ केरि,

अजस पेटारी ताहि करि गई गिरा मति फेरि ||१२ ||

 

चौपाई

दीख मंथरा नगरु बनावा, मंजुल मंगल बाज बधावा ||

पूछेसि लोगन्ह काह उछाहू, राम तिलकु सुनि भा उर दाहू ||१||

करइ बिचारु कुबुद्धि कुजाती, होइ अकाजु कवनि बिधि राती ||

देखि लागि मधु कुटिल किराती, जिमि गवँ तकइ लेउँ केहि भाँती ||२||

भरत मातु पहिं गइ बिलखानी, का अनमनि हसि कह हँसि रानी ||

ऊतरु देइ न लेइ उसासू, नारि चरित करि ढारइ आँसू ||३||

हँसि कह रानि गालु बड़ तोरें, दीन्ह लखन सिख अस मन मोरें ||

तबहुँ न बोल चेरि बड़ि पापिनि, छाड़इ स्वास कारि जनु साँपिनि ||४||

 

दोहा

सभय रानि कह कहसि किन कुसल रामु महिपालु,

लखनु भरतु रिपुदमनु सुनि भा कुबरी उर सालु ||१३ ||

 

चौपाई

कत सिख देइ हमहि कोउ माई, गालु करब केहि कर बलु पाई ||

रामहि छाड़ि कुसल केहि आजू, जेहि जनेसु देइ जुबराजू ||१||

भयउ कौसिलहि बिधि अति दाहिन, देखत गरब रहत उर नाहिन ||

देखेहु कस न जाइ सब सोभा, जो अवलोकि मोर मनु छोभा ||२||

पूतु बिदेस न सोचु तुम्हारें, जानति हहु बस नाहु हमारें ||

नीद बहुत प्रिय सेज तुराई, लखहु न भूप कपट चतुराई ||३||

सुनि प्रिय बचन मलिन मनु जानी, झुकी रानि अब रहु अरगानी ||

पुनि अस कबहुँ कहसि घरफोरी, तब धरि जीभ कढ़ावउँ तोरी ||४||

 

दोहा

काने खोरे कूबरे कुटिल कुचाली जानि,

तिय बिसेषि पुनि चेरि कहि भरतमातु मुसुकानि ||१४ ||

 

चौपाई

प्रियबादिनि सिख दीन्हिउँ तोही, सपनेहुँ तो पर कोपु न मोही ||

सुदिनु सुमंगल दायकु सोई, तोर कहा फुर जेहि दिन होई ||१||

जेठ स्वामि सेवक लघु भाई, यह दिनकर कुल रीति सुहाई ||

राम तिलकु जौं साँचेहुँ काली, देउँ मागु मन भावत आली ||२||

कौसल्या सम सब महतारी, रामहि सहज सुभायँ पिआरी ||

मो पर करहिं सनेहु बिसेषी, मैं करि प्रीति परीछा देखी ||३||

जौं बिधि जनमु देइ करि छोहू, होहुँ राम सिय पूत पुतोहू ||

प्रान तें अधिक रामु प्रिय मोरें, तिन्ह कें तिलक छोभु कस तोरें ||४||

 

दोहा

भरत सपथ तोहि सत्य कहु परिहरि कपट दुराउ,

हरष समय बिसमउ करसि कारन मोहि सुनाउ ||१५ ||

 

चौपाई

एकहिं बार आस सब पूजी, अब कछु कहब जीभ करि दूजी ||

फोरै जोगु कपारु अभागा, भलेउ कहत दुख रउरेहि लागा ||१||

कहहिं झूठि फुरि बात बनाई, ते प्रिय तुम्हहि करुइ मैं माई ||

हमहुँ कहबि अब ठकुरसोहाती, नाहिं त मौन रहब दिनु राती ||२||

करि कुरूप बिधि परबस कीन्हा, बवा सो लुनिअ लहिअ जो दीन्हा ||

कोउ नृप होउ हमहि का हानी, चेरि छाड़ि अब होब कि रानी ||३||

जारै जोगु सुभाउ हमारा, अनभल देखि न जाइ तुम्हारा ||

तातें कछुक बात अनुसारी, छमिअ देबि बड़ि चूक हमारी ||४||

 

दोहा

गूढ़ कपट प्रिय बचन सुनि तीय अधरबुधि रानि,

सुरमाया बस बैरिनिहि सुह्द जानि पतिआनि ||१६ ||

 

चौपाई

सादर पुनि पुनि पूँछति ओही, सबरी गान मृगी जनु मोही ||

तसि मति फिरी अहइ जसि भाबी, रहसी चेरि घात जनु फाबी ||१||

तुम्ह पूँछहु मैं कहत डेराऊँ, धरेउ मोर घरफोरी नाऊँ ||

सजि प्रतीति बहुबिधि गढ़ि छोली, अवध साढ़साती तब बोली ||२||

२प्रिय सिय रामु कहा तुम्ह रानी, रामहि तुम्ह प्रिय सो फुरि बानी ||

रहा प्रथम अब ते दिन बीते, समउ फिरें रिपु होहिं पिंरीते ||३||

भानु कमल कुल पोषनिहारा, बिनु जल जारि करइ सोइ छारा ||

जरि तुम्हारि चह सवति उखारी, रूँधहु करि उपाउ बर बारी ||४||

 

दोहा

तुम्हहि न सोचु सोहाग बल निज बस जानहु राउ,

मन मलीन मुह मीठ नृप राउर सरल सुभाउ ||१७ ||

 

चौपाई

चतुर गँभीर राम महतारी, बीचु पाइ निज बात सँवारी ||

पठए भरतु भूप ननिअउरें, राम मातु मत जानव रउरें ||१||

सेवहिं सकल सवति मोहि नीकें, गरबित भरत मातु बल पी कें ||

सालु तुम्हार कौसिलहि माई, कपट चतुर नहिं होइ जनाई ||२||

राजहि तुम्ह पर प्रेमु बिसेषी, सवति सुभाउ सकइ नहिं देखी ||

रची प्रंपचु भूपहि अपनाई, राम तिलक हित लगन धराई ||३||

यह कुल उचित राम कहुँ टीका, सबहि सोहाइ मोहि सुठि नीका ||

आगिलि बात समुझि डरु मोही, देउ दैउ फिरि सो फलु ओही ||४||

 

दोहा

रचि पचि कोटिक कुटिलपन कीन्हेसि कपट प्रबोधु ||

कहिसि कथा सत सवति कै जेहि बिधि बाढ़ बिरोधु ||१८ ||

 

चौपाई

भावी बस प्रतीति उर आई, पूँछ रानि पुनि सपथ देवाई ||

का पूछहुँ तुम्ह अबहुँ न जाना, निज हित अनहित पसु पहिचाना ||१||

भयउ पाखु दिन सजत समाजू, तुम्ह पाई सुधि मोहि सन आजू ||

खाइअ पहिरिअ राज तुम्हारें, सत्य कहें नहिं दोषु हमारें ||२||

जौं असत्य कछु कहब बनाई, तौ बिधि देइहि हमहि सजाई ||

रामहि तिलक कालि जौं भयउ,  तुम्ह कहुँ बिपति बीजु बिधि बयऊ ||३||

रेख खँचाइ कहउँ बलु भाषी, भामिनि भइहु दूध कइ माखी ||

जौं सुत सहित करहु सेवकाई, तौ घर रहहु न आन उपाई ||४||

 

दोहा

कद्रूँ बिनतहि दीन्ह दुखु तुम्हहि कौसिलाँ देब,

भरतु बंदिगृह सेइहहिं लखनु राम के नेब ||१९ ||

 

चौपाई

कैकयसुता सुनत कटु बानी, कहि न सकइ कछु सहमि सुखानी ||

तन पसेउ कदली जिमि काँपी, कुबरीं दसन जीभ तब चाँपी ||१||

कहि कहि कोटिक कपट कहानी, धीरजु धरहु प्रबोधिसि रानी ||

फिरा करमु प्रिय लागि कुचाली, बकिहि सराहइ मानि मराली ||२||

सुनु मंथरा बात फुरि तोरी, दहिनि आँखि नित फरकइ मोरी ||

दिन प्रति देखउँ राति कुसपने, कहउँ न तोहि मोह बस अपने ||३||

काह करौ सखि सूध सुभाऊ, दाहिन बाम न जानउँ काऊ ||४||

 

दोहा

अपने चलत न आजु लगि अनभल काहुक कीन्ह,

केहिं अघ एकहि बार मोहि दैअँ दुसह दुखु दीन्ह ||२० ||

 

चौपाई

नैहर जनमु भरब बरु जाइ, जिअत न करबि सवति सेवकाई ||

अरि बस दैउ जिआवत जाही, मरनु नीक तेहि जीवन चाही ||१||

दीन बचन कह बहुबिधि रानी, सुनि कुबरीं तियमाया ठानी ||

अस कस कहहु मानि मन ऊना, सुखु सोहागु तुम्ह कहुँ दिन दूना ||२||

जेहिं राउर अति अनभल ताका, सोइ पाइहि यहु फलु परिपाका ||

जब तें कुमत सुना मैं स्वामिनि, भूख न बासर नींद न जामिनि ||३||

पूँछेउ गुनिन्ह रेख तिन्ह खाँची, भरत भुआल होहिं यह साँची ||

भामिनि करहु त कहौं उपाऊ, है तुम्हरीं सेवा बस राऊ ||४||

 

दोहा

परउँ कूप तुअ बचन पर सकउँ पूत पति त्यागि,

कहसि मोर दुखु देखि बड़ कस न करब हित लागि ||२१ ||

 

चौपाई

कुबरीं करि कबुली कैकेई, कपट छुरी उर पाहन टेई ||

लखइ न रानि निकट दुखु कैंसे, चरइ हरित तिन बलिपसु जैसें ||१||

सुनत बात मृदु अंत कठोरी, देति मनहुँ मधु माहुर घोरी ||

कहइ चेरि सुधि अहइ कि नाही, स्वामिनि कहिहु कथा मोहि पाहीं ||२||

दुइ बरदान भूप सन थाती, मागहु आजु जुड़ावहु छाती ||

सुतहि राजु रामहि बनवासू, देहु लेहु सब सवति हुलासु ||३||

भूपति राम सपथ जब करई, तब मागेहु जेहिं बचनु न टरई ||

होइ अकाजु आजु निसि बीतें, बचनु मोर प्रिय मानेहु जी तें ||४||

 

दोहा

बड़ कुघातु करि पातकिनि कहेसि कोपगृहँ जाहु,

काजु सँवारेहु सजग सबु सहसा जनि पतिआहु ||२२ ||

 

चौपाई

कुबरिहि रानि प्रानप्रिय जानी, बार बार बड़ि बुद्धि बखानी ||

तोहि सम हित न मोर संसारा, बहे जात कइ भइसि अधारा ||१||

जौं बिधि पुरब मनोरथु काली, करौं तोहि चख पूतरि आली ||

बहुबिधि चेरिहि आदरु देई, कोपभवन गवनि कैकेई ||२||

बिपति बीजु बरषा रितु चेरी, भुइँ भइ कुमति कैकेई केरी ||

पाइ कपट जलु अंकुर जामा, बर दोउ दल दुख फल परिनामा ||३||

कोप समाजु साजि सबु सोई, राजु करत निज कुमति बिगोई ||

राउर नगर कोलाहलु होई, यह कुचालि कछु जान न कोई ||४||

 

दोहा

प्रमुदित पुर नर नारि, सब सजहिं सुमंगलचार,

एक प्रबिसहिं एक निर्गमहिं भीर भूप दरबार ||२३ ||

 

चौपाई

बाल सखा सुन हियँ हरषाहीं, मिलि दस पाँच राम पहिं जाहीं ||

प्रभु आदरहिं प्रेमु पहिचानी, पूँछहिं कुसल खेम मृदु बानी ||१||

फिरहिं भवन प्रिय आयसु पाई, करत परसपर राम बड़ाई ||

को रघुबीर सरिस संसारा, सीलु सनेह निबाहनिहारा ||२||

जेंहि जेंहि जोनि करम बस भ्रमहीं, तहँ तहँ ईसु देउ यह हमहीं ||

सेवक हम स्वामी सियनाहू, होउ नात यह ओर निबाहू ||३||

अस अभिलाषु नगर सब काहू, कैकयसुता ह्दयँ अति दाहू ||

को न कुसंगति पाइ नसाई, रहइ न नीच मतें चतुराई ||४||

 

दोहा

साँस समय सानंद नृपु गयउ कैकेई गेहँ,

गवनु निठुरता निकट किय जनु धरि देह सनेहँ ||२४ ||

 

चौपाई

कोपभवन सुनि सकुचेउ राउ, भय बस अगहुड़ परइ न पाऊ ||

सुरपति बसइ बाहँबल जाके, नरपति सकल रहहिं रुख ताकें ||१||

सो सुनि तिय रिस गयउ सुखाई, देखहु काम प्रताप बड़ाई ||

सूल कुलिस असि अँगवनिहारे, ते रतिनाथ सुमन सर मारे ||२||

सभय नरेसु प्रिया पहिं गयऊ, देखि दसा दुखु दारुन भयऊ ||

भूमि सयन पटु मोट पुराना, दिए डारि तन भूषण नाना ||३||

कुमतिहि कसि कुबेषता फाबी, अन अहिवातु सूच जनु भाबी ||

जाइ निकट नृपु कह मृदु बानी, प्रानप्रिया केहि हेतु रिसानी ||४||

 

छंद

केहि हेतु रानि रिसानि परसत पानि पतिहि नेवारई,

मानहुँ सरोष भुअंग भामिनि बिषम भाँति निहारई ||

दोउ बासना रसना दसन बर मरम ठाहरु देखई,

तुलसी नृपति भवतब्यता बस काम कौतुक लेखई ||

 

सोरठा

बार बार कह राउ सुमुखि सुलोचिनि पिकबचनि,

कारन मोहि सुनाउ गजगामिनि निज कोप कर ||२५ ||

 

चौपाई

अनहित तोर प्रिया केइँ कीन्हा, केहि दुइ सिर केहि जमु चह लीन्हा ||

कहु केहि रंकहि करौ नरेसू, कहु केहि नृपहि निकासौं देसू ||१||

सकउँ तोर अरि अमरउ मारी, काह कीट बपुरे नर नारी ||

जानसि मोर सुभाउ बरोरू, मनु तव आनन चंद चकोरू ||२||

प्रिया प्रान सुत सरबसु मोरें, परिजन प्रजा सकल बस तोरें ||

जौं कछु कहौ कपटु करि तोही, भामिनि राम सपथ सत मोही ||३||

बिहसि मागु मनभावति बाता, भूषन सजहि मनोहर गाता ||

घरी कुघरी समुझि जियँ देखू, बेगि प्रिया परिहरहि कुबेषू ||४||

 

दोहा

यह सुनि मन गुनि सपथ बड़ि बिहसि उठी मतिमंद,

भूषन सजति बिलोकि मृगु मनहुँ किरातिनि फंद ||२६ ||

 

चौपाई

पुनि कह राउ सुह्रद जियँ जानी, प्रेम पुलकि मृदु मंजुल बानी ||

भामिनि भयउ तोर मनभावा, घर घर नगर अनंद बधावा ||१||

रामहि देउँ कालि जुबराजू, सजहि सुलोचनि मंगल साजू ||

दलकि उठेउ सुनि ह्रदउ कठोरू, जनु छुइ गयउ पाक बरतोरू ||२||

ऐसिउ पीर बिहसि तेहि गोई, चोर नारि जिमि प्रगटि न रोई ||

लखहिं न भूप कपट चतुराई, कोटि कुटिल मनि गुरू पढ़ाई ||३||

जद्यपि नीति निपुन नरनाहू, नारिचरित जलनिधि अवगाहू ||

कपट सनेहु बढ़ाइ बहोरी, बोली बिहसि नयन मुहु मोरी ||४||

 

दोहा

मागु मागु पै कहहु पिय कबहुँ न देहु न लेहु,

देन कहेहु बरदान दुइ तेउ पावत संदेहु ||२७ ||

 

चौपाई

जानेउँ मरमु राउ हँसि कहई, तुम्हहि कोहाब परम प्रिय अहई ||

थाति राखि न मागिहु काऊ, बिसरि गयउ मोहि भोर सुभाऊ ||१||

झूठेहुँ हमहि दोषु जनि देहू, दुइ कै चारि मागि मकु लेहू ||

रघुकुल रीति सदा चलि आई, प्रान जाहुँ बरु बचनु न जाई ||२||

नहिं असत्य सम पातक पुंजा, गिरि सम होहिं कि कोटिक गुंजा ||

सत्यमूल सब सुकृत सुहाए, बेद पुरान बिदित मनु गाए ||३||

तेहि पर राम सपथ करि आई, सुकृत सनेह अवधि रघुराई ||

बात दृढ़ाइ कुमति हँसि बोली, कुमत कुबिहग कुलह जनु खोली ||४||

 

दोहा

भूप मनोरथ सुभग बनु सुख सुबिहंग समाजु,

भिल्लनि जिमि छाड़न चहति बचनु भयंकरु बाजु ||२८ ||

 

मासपारायण, तेरहवाँ विश्राम

 

चौपाई

सुनहु प्रानप्रिय भावत जी का, देहु एक बर भरतहि टीका ||

मागउँ दूसर बर कर जोरी, पुरवहु नाथ मनोरथ मोरी ||१||

तापस बेष बिसेषि उदासी, चौदह बरिस रामु बनबासी ||

सुनि मृदु बचन भूप हियँ सोकू, ससि कर छुअत बिकल जिमि कोकू ||२||

गयउ सहमि नहिं कछु कहि आवा, जनु सचान बन झपटेउ लावा ||

बिबरन भयउ निपट नरपालू, दामिनि हनेउ मनहुँ तरु तालू ||३||

माथे हाथ मूदि दोउ लोचन, तनु धरि सोचु लाग जनु सोचन ||

मोर मनोरथु सुरतरु फूला, फरत करिनि जिमि हतेउ समूला ||४||

अवध उजारि कीन्हि कैकेईं, दीन्हसि अचल बिपति कै नेईं ||५||

 

दोहा

कवनें अवसर का भयउ गयउँ नारि बिस्वास,

जोग सिद्धि फल समय जिमि जतिहि अबिद्या नास ||२९ ||

 

चौपाई

एहि बिधि राउ मनहिं मन झाँखा, देखि कुभाँति कुमति मन माखा ||

भरतु कि राउर पूत न होहीं, आनेहु मोल बेसाहि कि मोही ||१||

जो सुनि सरु अस लाग तुम्हारें, काहे न बोलहु बचनु सँभारे ||

देहु उतरु अनु करहु कि नाहीं, सत्यसंध तुम्ह रघुकुल माहीं ||२||

देन कहेहु अब जनि बरु देहू, तजहुँ सत्य जग अपजसु लेहू ||

सत्य सराहि कहेहु बरु देना, जानेहु लेइहि मागि चबेना ||३||

सिबि दधीचि बलि जो कछु भाषा, तनु धनु तजेउ बचन पनु राखा ||

अति कटु बचन कहति कैकेई, मानहुँ लोन जरे पर देई ||४||

 

दोहा

धरम धुरंधर धीर धरि नयन उघारे रायँ,

सिरु धुनि लीन्हि उसास असि मारेसि मोहि कुठायँ ||३० ||

 

चौपाई

आगें दीखि जरत रिस भारी, मनहुँ रोष तरवारि उघारी ||

मूठि कुबुद्धि धार निठुराई, धरी कूबरीं सान बनाई ||१||

लखी महीप कराल कठोरा, सत्य कि जीवनु लेइहि मोरा ||

बोले राउ कठिन करि छाती, बानी सबिनय तासु सोहाती ||२||

प्रिया बचन कस कहसि कुभाँती, भीर प्रतीति प्रीति करि हाँती ||

मोरें भरतु रामु दुइ आँखी, सत्य कहउँ करि संकरू साखी ||३||

अवसि दूतु मैं पठइब प्राता, ऐहहिं बेगि सुनत दोउ भ्राता ||

सुदिन सोधि सबु साजु सजाई, देउँ भरत कहुँ राजु बजाई ||४||

 

दोहा

लोभु न रामहि राजु कर बहुत भरत पर प्रीति,

मैं बड़ छोट बिचारि जियँ करत रहेउँ नृपनीति ||३१ ||

 

चौपाई

राम सपथ सत कहूँ सुभाऊ, राममातु कछु कहेउ न काऊ ||

मैं सबु कीन्ह तोहि बिनु पूँछें, तेहि तें परेउ मनोरथु छूछें ||१||

रिस परिहरू अब मंगल साजू, कछु दिन गएँ भरत जुबराजू ||

एकहि बात मोहि दुखु लागा, बर दूसर असमंजस मागा ||२||

अजहुँ हृदय जरत तेहि आँचा, रिस परिहास कि साँचेहुँ साँचा ||

कहु तजि रोषु राम अपराधू, सबु कोउ कहइ रामु सुठि साधू ||३||

तुहूँ सराहसि करसि सनेहू, अब सुनि मोहि भयउ संदेहू ||

जासु सुभाउ अरिहि अनुकूला, सो किमि करिहि मातु प्रतिकूला ||४||

 

दोहा

प्रिया हास रिस परिहरहि मागु बिचारि बिबेकु,

जेहिं देखाँ अब नयन भरि भरत राज अभिषेकु ||३२ ||

 

चौपाई

जिऐ मीन बरू बारि बिहीना, मनि बिनु फनिकु जिऐ दुख दीना ||

कहउँ सुभाउ न छलु मन माहीं, जीवनु मोर राम बिनु नाहीं ||१||

समुझि देखु जियँ प्रिया प्रबीना, जीवनु राम दरस आधीना ||

सुनि म्रदु बचन कुमति अति जरई, मनहुँ अनल आहुति घृत परई ||२||

कहइ करहु किन कोटि उपाया, इहाँ न लागिहि राउरि माया ||

देहु कि लेहु अजसु करि नाहीं, मोहि न बहुत प्रपंच सोहाहीं ||३||

रामु साधु तुम्ह साधु सयाने, राममातु भलि सब पहिचाने ||

जस कौसिलाँ मोर भल ताका, तस फलु उन्हहि देउँ करि साका ||४||

 

दोहा

होत प्रात मुनिबेष धरि जौं न रामु बन जाहिं,

मोर मरनु राउर अजस नृप समुझिअ मन माहिं ||३३ ||

 

चौपाई

अस कहि कुटिल भई उठि ठाढ़ी, मानहुँ रोष तरंगिनि बाढ़ी ||

पाप पहार प्रगट भइ सोई, भरी क्रोध जल जाइ न जोई ||१||

दोउ बर कूल कठिन हठ धारा, भवँर कूबरी बचन प्रचारा ||

ढाहत भूपरूप तरु मूला, चली बिपति बारिधि अनुकूला ||२||

लखी नरेस बात फुरि साँची, तिय मिस मीचु सीस पर नाची ||

गहि पद बिनय कीन्ह बैठारी, जनि दिनकर कुल होसि कुठारी ||३||

मागु माथ अबहीं देउँ तोही, राम बिरहँ जनि मारसि मोही ||

राखु राम कहुँ जेहि तेहि भाँती, नाहिं त जरिहि जनम भरि छाती ||४||

 

दोहा

देखी ब्याधि असाध नृपु परेउ धरनि धुनि माथ,

कहत परम आरत बचन राम राम रघुनाथ ||३४ ||

 

चौपाई

ब्याकुल राउ सिथिल सब गाता, करिनि कलपतरु मनहुँ निपाता ||

कंठु सूख मुख आव न बानी, जनु पाठीनु दीन बिनु पानी ||१||

पुनि कह कटु कठोर कैकेई, मनहुँ घाय महुँ माहुर देई ||

जौं अंतहुँ अस करतबु रहेऊ, मागु मागु तुम्ह केहिं बल कहेऊ ||२||

दुइ कि होइ एक समय भुआला, हँसब ठठाइ फुलाउब गाला ||

दानि कहाउब अरु कृपनाई, होइ कि खेम कुसल रौताई ||३||

छाड़हु बचनु कि धीरजु धरहू, जनि अबला जिमि करुना करहू ||

तनु तिय तनय धामु धनु धरनी, सत्यसंध कहुँ तृन सम बरनी ||४||

 

दोहा

मरम बचन सुनि राउ कह कहु कछु दोषु न तोर,

लागेउ तोहि पिसाच जिमि कालु कहावत मोर ||३५ ||

 

चौपाई

चहत न भरत भूपतहि भोरें, बिधि बस कुमति बसी जिय तोरें ||

सो सबु मोर पाप परिनामू, भयउ कुठाहर जेहिं बिधि बामू ||१||

सुबस बसिहि फिरि अवध सुहाई, सब गुन धाम राम प्रभुताई ||

करिहहिं भाइ सकल सेवकाई, होइहि तिहुँ पुर राम बड़ाई ||२||

तोर कलंकु मोर पछिताऊ, मुएहुँ न मिटहि न जाइहि काऊ ||

अब तोहि नीक लाग करु सोई, लोचन ओट बैठु मुहु गोई ||३||

जब लगि जिऔं कहउँ कर जोरी, तब लगि जनि कछु कहसि बहोरी ||

फिरि पछितैहसि अंत अभागी, मारसि गाइ नहारु लागी ||४||

 

दोहा

परेउ राउ कहि कोटि बिधि काहे करसि निदानु,

कपट सयानि न कहति कछु जागति मनहुँ मसानु ||३६ ||

 

चौपाई

राम राम रट बिकल भुआलू, जनु बिनु पंख बिहंग बेहालू ||

हृदयँ मनाव भोरु जनि होई, रामहि जाइ कहै जनि कोई ||१||

उदउ करहु जनि रबि रघुकुल गुर, अवध बिलोकि सूल होइहि उर ||

भूप प्रीति कैकइ कठिनाई, उभय अवधि बिधि रची बनाई ||२||

बिलपत नृपहि भयउ भिनुसारा, बीना बेनु संख धुनि द्वारा ||

पढ़हिं भाट गुन गावहिं गायक, सुनत नृपहि जनु लागहिं सायक ||

मंगल सकल सोहाहिं न कैसें, सहगामिनिहि बिभूषन जैसें ||३||

तेहिं निसि नीद परी नहि काहू, राम दरस लालसा उछाहू ||

 

दोहा

द्वार भीर सेवक सचिव कहहिं उदित रबि देखि,

जागेउ अजहुँ न अवधपति कारनु कवनु बिसेषि ||३७ ||

 

चौपाई

पछिले पहर भूपु नित जागा, आजु हमहि बड़ अचरजु लागा ||

जाहु सुमंत्र जगावहु जाई, कीजिअ काजु रजायसु पाई ||१||

गए सुमंत्रु तब राउर माही, देखि भयावन जात डेराहीं ||

धाइ खाइ जनु जाइ न हेरा, मानहुँ बिपति बिषाद बसेरा ||२||

पूछें कोउ न ऊतरु देई, गए जेंहिं भवन भूप कैकैई ||

कहि जयजीव बैठ सिरु नाई, दैखि भूप गति गयउ सुखाई ||३||

सोच बिकल बिबरन महि परेऊ, मानहुँ कमल मूलु परिहरेऊ ||

सचिउ सभीत सकइ नहिं पूँछी, बोली असुभ भरी सुभ छूछी ||४||

 

दोहा

परी न राजहि नीद निसि हेतु जान जगदीसु,

रामु रामु रटि भोरु किय कहइ न मरमु महीसु ||३८ ||

 

चौपाई

आनहु रामहि बेगि बोलाई, समाचार तब पूँछेहु आई ||

चलेउ सुमंत्र राय रूख जानी, लखी कुचालि कीन्हि कछु रानी ||१||

सोच बिकल मग परइ न पाऊ, रामहि बोलि कहिहि का राऊ ||

उर धरि धीरजु गयउ दुआरें, पूछँहिं सकल देखि मनु मारें ||२||

समाधानु करि सो सबही का, गयउ जहाँ दिनकर कुल टीका ||

रामु सुमंत्रहि आवत देखा, आदरु कीन्ह पिता सम लेखा ||३||

निरखि बदनु कहि भूप रजाई, रघुकुलदीपहि चलेउ लेवाई ||

रामु कुभाँति सचिव सँग जाहीं, देखि लोग जहँ तहँ बिलखाहीं ||४||

 

दोहा

जाइ दीख रघुबंसमनि नरपति निपट कुसाजु ||

सहमि परेउ लखि सिंघिनिहि मनहुँ बृद्ध गजराजु ||३९ ||

 

चौपाई

सूखहिं अधर जरइ सबु अंगू, मनहुँ दीन मनिहीन भुअंगू ||

सरुष समीप दीखि कैकेई, मानहुँ मीचु घरी गनि लेई ||१||

करुनामय मृदु राम सुभाऊ, प्रथम दीख दुखु सुना न काऊ ||

तदपि धीर धरि समउ बिचारी, पूँछी मधुर बचन महतारी ||२||

मोहि कहु मातु तात दुख कारन, करिअ जतन जेहिं होइ निवारन ||

सुनहु राम सबु कारन एहू, राजहि तुम पर बहुत सनेहू ||३||

देन कहेन्हि मोहि दुइ बरदाना, मागेउँ जो कछु मोहि सोहाना,

सो सुनि भयउ भूप उर सोचू, छाड़ि न सकहिं तुम्हार सँकोचू ||४||

 

दोहा

सुत सनेह इत बचनु उत संकट परेउ नरेसु,

सकहु न आयसु धरहु सिर मेटहु कठिन कलेसु ||४० ||

 

चौपाई

निधरक बैठि कहइ कटु बानी, सुनत कठिनता अति अकुलानी ||

जीभ कमान बचन सर नाना, मनहुँ महिप मृदु लच्छ समाना ||१||

जनु कठोरपनु धरें सरीरू, सिखइ धनुषबिद्या बर बीरू ||

सब प्रसंगु रघुपतिहि सुनाई, बैठि मनहुँ तनु धरि निठुराई ||२||

मन मुसकाइ भानुकुल भानु, रामु सहज आनंद निधानू ||

बोले बचन बिगत सब दूषन, मृदु मंजुल जनु बाग बिभूषन ||३||

सुनु जननी सोइ सुतु बड़भागी, जो पितु मातु बचन अनुरागी ||

तनय मातु पितु तोषनिहारा, दुर्लभ जननि सकल संसारा ||४||