कुंडलिया (२५४)
ऐसा ब्राह्मन मिलै जो ताके परछौं पाँय ॥
ता के परछौं पाँय ब्रह्म अपने को पावै ।
भर्म जनेऊ तोरि प्रेम तिरसूत बनावै ॥
सब कर्मन को करै कर्म से रहता न्यारा ।
दुतिया देइ बहाय ब्रह्म का करै बिचारा ॥
ज्ञान दिवस में सयन मोह रजनी में जागै ।
पारब्रह्म भगवान ताहि घर भिच्छा माँगै ॥
चेतन देइ जगाय ब्रह्म की गाँठि को खोलै ।
करै गायत्री गुप्त सब्द ब्रह्मांड में बोलै ॥
पलटू तजै अठारह सहस बरन ह्वै जाय ।
ऐसा ब्राह्मन मिलै जो ता के परछौं पाँय ॥
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