कुंडलिया (२४४)
कौड़ी गाँठिन राखई हमा-नियामत४ खाय ॥
हमा-नियामत खाय नहीं कुछ जग की आसा ।
छत्तिस ब्यंजन रहै सबर से हाजिर खासा ॥
जेकरे है सत नाम नाम की चेरी माया ।
जोरू कहवाँ जाय खसम जब कैद में आया ॥
माया आवै चली रैनि दिन में दुरियावों ।
सतगुरु दास कहाय नहीं मैं माँगन जावों ॥
राजा औ उमराव हाथ सब बाँधे आवैं ।
द्वारे से फिरि जायें नहीं फिर मुजरा पावैं ॥
जंगल में मंगल करै पलटू बेपरवाय ।
कौड़ी गाँठिन राखई हमा-नियामत खाय ॥
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(४) छप्पन प्रकार का भोजन ।