कुंडलिया (१९५)
सब अँधरन के बीच एक है काना राजा ॥
काना राजा रहै ताहि कै रैयत आँधा ।
काना को अगुवाइ एक इक पकरिनि काँधा ॥
बीच मिला दरियाव अंध को ठाढ़ कराई ।
लेन गया वह थाह सूँसि लैगा घिसियाई ॥
साँझ आइ नियरानि अंध सब करैं बिचारा ।
लाग खान को करन बड़ा सरदार हमारा ॥
आधी रात के बीच सबै मिलि गौगा२ लाई ।
भेड़हा३ बोला प्राय चलो इक एक बुलाई ॥
एक एक तुम चलो नाहिं है बासन४ दूजा ।
गरदन धै लैजाय करै ताही की पूजा ॥
पलटू सब को खाय मगन ह्वै भेड़हा गाजा ।
सब अँधरन के बीच एक है काना राजा ॥
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(१) कर्म से भाव है (२) शोर । (३) काल से भाव है । (४)बरतन