कुंडलिया (१०८)
सोई सती सराहिये जरै पिया के साथ ॥
जरै पिया के साथ सोई है नारि सयानी ।
रहै चरन चित लाय एक से और न जानी ॥
जगत कर उपहास पिया का संग न छोड़ै ।
प्रेम की सेज बिछाय मेहर की चादर ओढ़ै ॥
ऐसी रहनी रहै तजै जो भोग बिलासा ।
मारै भूख पियास याद सँग चलती स्वासा ॥
रैन दिवस बेहोस पिया के रँग में राती ।
तन की सुधि है नहीं पिया सँग बोलत जाती ॥
पलटू गुरु परसाद से किया पिया को हाथ१ ।
सोई सती सराहिये जरै पिया के साथ ।।
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