कुंडलिया (९९)
खामिन्द कब गोहरावै चाकर रहै हजूर ।।
चाकर रहै हजूर होई ना निमक-हरामी ।
डेरत रहै दिन राति लगै ना कबहीं खामी३ ॥
आठ पहर रहै ठाढ़ सोई है चाकर पूरा ।
का जानी केहि घरी हरी दै देइ अजूरा४ ॥
निवाले रोह बरोह सलाम में रहता चोटा५ ।
वह काफिर बेपीर खायगा आखिर सोटा ।।
पलटू पलक न भूलिये इतना काम जरूर ।
खामिन्द कब गोहरावै चाकर रहै हजूर ॥
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(३) कचाई, चूक । (8) मिहमताना, इनाम । (५) खाना ( निवाला) मिलने के वक्त तो हाजिर ( रोहब रोह-रूबरू) और सलाम यानी काम के वक्त गायब ( चोटा=चोर)