श्री गुरू ग्रंथ साहिब दर्पण । टीकाकार: प्रोफैसर साहिब सिंह । अनुवादक भुपिन्दर सिंह भाईख़ेल

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पउड़ी ॥ आपणा आपु उपाइओनु तदहु होरु न कोई ॥ मता मसूरति आपि करे जो करे सु होई ॥ तदहु आकासु न पातालु है ना त्रै लोई ॥ तदहु आपे आपि निरंकारु है ना ओपति होई ॥ जिउ तिसु भावै तिवै करे तिसु बिनु अवरु न कोई ॥१॥ {पन्ना 509}

शब्दार्थ: उपाइओनु = उपाया+उनि, उसने पैदा किया। मता मसूरति = सलाह मश्वरा। त्रै लोई = तीन लोक। ओपति = उत्पत्ति, सृष्टि।

सरलार्थ: जब प्रभू ने अपना आप (ही) पैदा किया हुआ था तब कोई और दूसरा नहीं था, सलाह-मश्वरा भी खुद ही करता था, जो करता था वह होता था। उस वक्त ना आकाश ना पाताल और ना ही ये तीनों लोक थे, कोई उत्पत्ति अभी नहीं हुई थी, आकार-रहित परमात्मा अभी खुद ही खुद था।

जो प्रभू को भाता है वही करता है उसके बिना और कोई नहीं है।1।

सलोकु मः ३ ॥ साहिबु मेरा सदा है दिसै सबदु कमाइ ॥ ओहु अउहाणी कदे नाहि ना आवै ना जाइ ॥ सदा सदा सो सेवीऐ जो सभ महि रहै समाइ ॥ अवरु दूजा किउ सेवीऐ जमै तै मरि जाइ ॥ निहफलु तिन का जीविआ जि खसमु न जाणहि आपणा अवरी कउ चितु लाइ ॥ नानक एव न जापई करता केती देइ सजाइ ॥१॥ {पन्ना 509}

शब्दार्थ: अउहाणी = नाश होने वाला। निहफलु = व्यर्थ। चितु लाइ = चित्त लगा के। ऐव = इस तरह (अंदाजे लगाने से)। केती = कितनी।

सरलार्थ: मेरा प्रभू सदा मौजूद है, पर ‘शबद’ कमाने से (आँखों से) दिखता है, वह कभी नाश होने वाला नहीं, ना पैदा होता है, ना मरता है। वह प्रभू सब (जीवों) में मौजूद है उसको सदा सिमरना चाहिए।

(भला) उस किसी दूसरे की भक्ति क्यों करें जो पैदा होता है और मर जाता है, उन लोगों का जीना व्यर्थ है जो (प्रभू को छोड़ के) किसी और में चित्त लगा के अपने पति-प्रभू को नहीं पहचानते। ऐसे लोगों को, हे नानक! करतार कितनी सजा देता है, ये बात ऐसे (अंदाजे लगाने से) नहीं पता चलती।1।

मः ३ ॥ सचा नामु धिआईऐ सभो वरतै सचु ॥ नानक हुकमु बुझि परवाणु होइ ता फलु पावै सचु ॥ कथनी बदनी करता फिरै हुकमै मूलि न बुझई अंधा कचु निकचु ॥२॥ {पन्ना 509}

शब्दार्थ: सभो = हर जगह। सचु = सदा स्थिर रहने वाला प्रभू। कथनी = बातें। बदनी = बदन (मुंह) से। कथनी बदनी = मुंह की बातें। कचु निकचु = निरोल कच्चा, निरोल कच्ची बातें करने वाले।

सरलार्थ: जो सदा स्थिर प्रभू हर जगह बसता है उसका नाम सिमरन करना चाहिए। हे नानक! अगर मनुष्य प्रभू की रजा को समझे तो उसकी हजूरी में कबूल होता है और (ये प्रभू-दर से प्रवानगी-रूप) सदा टिके रहने वाला फल प्राप्त करता है।

पर जो मनुष्य सिर्फ मुंह की बातें करता फिरता है, प्रभू की रजा को बिल्कुल नहीं समझता, वह अंधा है और निरी कच्ची बातें करने वाला है।2।

पउड़ी ॥ संजोगु विजोगु उपाइओनु स्रिसटी का मूलु रचाइआ ॥ हुकमी स्रिसटि साजीअनु जोती जोति मिलाइआ ॥ जोती हूं सभु चानणा सतिगुरि सबदु सुणाइआ ॥ ब्रहमा बिसनु महेसु त्रै गुण सिरि धंधै लाइआ ॥ माइआ का मूलु रचाइओनु तुरीआ सुखु पाइआ ॥२॥ {पन्ना 509}

शब्दार्थ: संजोगु = मेल। विजोगु = विछोड़ा। उपाइओनु = उसने पैदा किया। मूलु = आदि। साजीअनु = सजाई उसने, उसने पैदा की। जोती जोति = जीवों की आत्मा में अपनी आत्मा। जोती हूँ = जोति से ही। चानणा = प्रकाश। सिरि = सृजना करके, पैदा करके। रचाइओनु = रचाया उसने। तुरीआ = चौथे पद में।

सरलार्थ: परमात्मा ने संजोग और विजोग रूपी नियम बनाया और जगत (रचना) का मूल बाँध दिया। उसने अपने हुकम में सृष्टि की सृजना की और (जीवों की) आत्मा में (अपनी) ज्योति मलाई। ये सारा प्रकाश प्रभू की ज्योति से ही हुआ है–ये बचन सतिगुरू ने सुनाया है। ब्रहमा, विष्णु और शिव पैदा करके उनको तीन गुणों के धंधे में उसने डाल दिया।

परमात्मा ने (संजोग-वियोग रूप) माया का आदि रच दिया, (इस माया में रह के) सुख उसने ढूँढा जो तुरिया अवस्था में पहुँचा।2।

सलोकु मः ३ ॥ सो जपु सो तपु जि सतिगुर भावै ॥ सतिगुर कै भाणै वडिआई पावै ॥ नानक आपु छोडि गुर माहि समावै ॥१॥ {पन्ना 509}

शब्दार्थ: आपु = स्वै भाव, अहम्। जि सतिगुर भावै = अगर गुरू को अच्छा लगे।

सरलार्थ: सतिगुरू को भा जाना (अच्छा लगना) - यही जप है, यही तप है। मनुष्य सतिगुरू की रजा में रहके ही आदर-मान हासिल करता है। हे नानक! स्वैभाव त्याग के ही (मनुष्य) सतिगुरू में लीन हो जाता है।1।

मः ३ ॥ गुर की सिख को विरला लेवै ॥ नानक जिसु आपि वडिआई देवै ॥२॥ {पन्ना 509}

सरलार्थ: कोई विरला आदमी ही सतिगुरू की शिक्षा लेता है (भाव, शिक्षा पर चलता है) हे नानक! (गुरू की शिक्षा पर चलने की) महिमा उसी को मिलती है जिसको प्रभू खुद देता है।2।

पउड़ी ॥ माइआ मोहु अगिआनु है बिखमु अति भारी ॥ पथर पाप बहु लदिआ किउ तरीऐ तारी ॥ अनदिनु भगती रतिआ हरि पारि उतारी ॥ गुर सबदी मनु निरमला हउमै छडि विकारी ॥ हरि हरि नामु धिआईऐ हरि हरि निसतारी ॥३॥ {पन्ना 509}

शब्दार्थ: बिखम = मुश्किल। तरीअै तारी = तैरा जाए, पार लांघा जाए। अनदिनु = हर रोज। रतिआ = अगर रंगे जाएं।

सरलार्थ: (प्रभू की रची हुई) माया का मोह और ज्ञान (रूप समुंद्र) बहुत मुश्किल है; अगर बड़े-बड़े पापों (रूपी) पत्थरों से लदे हों (तो इस समुंद्र में से) कैसे तैर के लांघ सकते हैं? (भाव, इस मोह-समुंद्र में से सूखे बच के नहीं निकल सकते)।

प्रभू उन मनुष्यों को पार लंघाता है जो हर रोज (भाव, हर वक्त) उसकी भक्ति में रंगे हुए हैं, जिनका मन सतिगुरू के शबद के द्वारा अहंकार-विकार को त्याग के पवित्र हो जाता है। (सो) प्रभू का नाम ही सिमरना चाहिए, प्रभू ही (इस ‘माया-मोह रूपी समुंद्र से) पार लंघाता है।3।

सलोकु ॥ कबीर मुकति दुआरा संकुड़ा राई दसवै भाइ ॥ मनु तउ मैगलु होइ रहा निकसिआ किउ करि जाइ ॥ ऐसा सतिगुरु जे मिलै तुठा करे पसाउ ॥ मुकति दुआरा मोकला सहजे आवउ जाउ ॥१॥ {पन्ना 509}

शब्दार्थ: मुकति = (माया के मोह से) निजात। संकुड़ा = सिकुड़ा हुआ। दसवै भाइ = दसवाँ हिस्सा। मैगलु = (संस्कृत: मदकल) मस्त हाथी। किउकरि = कैसे। तुठा = प्रसन्न। पसाउ = प्रसादि, कृपा। सहजे = सहज अवस्था में, आराम से ही। तउ = तब।

सरलार्थ: हे कबीर! (माया के मोह से) खलासी (पाने) का दरवाजा इतना संकरा हुआ पड़ा है कि राई के दाने से भी दसवें हिस्से का हो गया है; पर (हमारा) मन (अहंकार में) मस्त हाथी बना हुआ है (इस में से) कैसे लांघा जा सके? अगर कोई ऐसा गुरू मिल जाए जो प्रसन्न हो के (हम पर) कृपा करे, तो मुक्ति का राह बहुत खुला हो जाता है, उसमें से आसानी से ही आ-जा सकते हैं।1।

मः ३ ॥ नानक मुकति दुआरा अति नीका नान्हा होइ सु जाइ ॥ हउमै मनु असथूलु है किउ करि विचु दे जाइ ॥ सतिगुर मिलिऐ हउमै गई जोति रही सभ आइ ॥ इहु जीउ सदा मुकतु है सहजे रहिआ समाइ ॥२॥ {पन्ना 509}

शब्दार्थ: नीका = छोटा सा। नाना = नन्हा, बहुत छोटा। सु = वह मनुष्य। असथूलु = मोटा। विचु दे = बीच में से। जोति = प्रकाश, रौशनी। मुकतु = आजाद।

नोट: कबीर जी ने लिखा ‘मन का मैगलु होइ रहा’। गुरू अमरदास जी ने इस की व्याख्या की है कि ‘हउमै मनु असथूलु है’; ‘मैगलु’ बनने का कारण है ‘अहंकार’।

सरलार्थ: हे नानक! माया के मोह से बच के निकलने का रास्ता बहुत छोटा है, वही उसमें से पार लांघ सकता है जो बहुत छोटा हो जाय। पर अगर मन अहंकार से मोटा हो गया, तो इस (छोटे से दरवाजे) में से कैसे लांघा जा सकता है?

जब गुरू मिलने से अहंकार दूर हो जाए तो अंदर प्रकाश हो जाता है, फिर ये आत्मा सदा (माया-मोह से) आजाद रहती है और अडोल अवस्था में टिकी रहती है।2।

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धन्यवाद!